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धिक्कार


धक्-धक् करने लगो। गोकुल ने शायद यह पत्र लिखा होगा। अँधेरे में कुछ न सूझा। पूछा --- कहां से लाई है ?

बुढ़िया ने कहा --- वही जो बाबू हुसेनगंज में रहते हैं, जो बम्बई में नौकर हैं, उन्हीं को बहू ने भेजा है।

वंशीधर ने कमरे में जाकर लैंप जलाया और पत्र पढ़ने लगे। मानी का खत था। लिखा था ---

'पूज्य चाचाजो, अभागिनी मानो का प्रणाम स्वीकार कीजिए।

मुझे यह सुनकर अत्यन्त दुःख हुआ कि गोकुल भया कहाँ चले गये और अब तक उनका पता नहीं है। मैं हो इसका कारण हूँ। यह कलक मेरे हो मुख पर लाना था वह भी लग गया। मेरे कारण मापको इतना शोक हुआ इसका मुझे बहुत दु.ख है। मगर भैया आवेगे अवश्य, इसका मुझे विश्वास है। मैं इसो नौ बजे वाला गालो से पाई जा रही हूँ। मुझसे जो कुछ अपराध हुए हैं, उन्हें क्षमा कोजिएगा गौर चाचीजो से मेरी ईश्वर से यही प्रार्थना है कि गोकुल भैया सकुश घर लोट आवे। ईश्वर की इच्छा हुई तो भैया के विवाह में आपके चरणों के दर्शन करू गो।'

वंशीधर ने पत्र को फाड़कर पुर्जे पुर्ने कर डाला। घमा में देखा तो आठ बज रहे थे। तुरन्त कपड़े पहने, सड़क पर आकर एका किया और स्टेशन चले।

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बंबईमेल प्लेटफार्म पर खड़ा था। मुसाफिरों में भगदड़ मची हुई थी। खोंचे- वालों को चोख-पुकार से कान में पड़ी आवाज न सुनाई देतो धी। गाड़ी छूटन में योड़ी ही देर थी। मानी और उसकी सास एक जनाने कमरे में घेठो हुई थी। माना सजल नेत्रों से सामने ताक रही थी। अतीत' चाहे दुःखद हो क्यों न हो, उनको स्मृतियाँ मधुर होती हैं। मानो आज उन बुरे दिनों को स्मरण करके सुखो हो रहो थो। गोकुल से अब न जाने कब भेंट होगी। चाचाजी आ जाते तो उनके दर्शन कर लेती। कभी-कभी विगढ़ते थे तो क्या उसके भले ही के लिए तो डाटते थे। वह भावेंगे नहीं। अब तो गाझे छूटने में थोड़ो हो देर है। कैसे आवे, समाज में हलचल न मच जायगी। भगवान् की इच्छा होगो, तो अब की जब यहाँ आऊँगी तो जरूर उनके दर्शन करूंगी।

एकाएक उसने लाला वंशीधर को आते देखा। वह गाड़ो से निचलकर वाहन