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मानसरोवर


बोला --- न मुझे यह आशा थी कि तुम मुझ पर इतना बड़ा लांछन रख दोगे। मुझे न मालूम था कि तुम मुझे इतना नीच और कुटिल समझते हो। मानो तुम्हारे लिए तिरस्कार को वस्तु हो, मेरे लिए वह श्रद्धा को वस्तु है और रहेगो। मुझे तुम्हारे सामने अपनी सफाई देने को जरूरत नहीं है, लेकिन मानो मेरे लिए उससे कहीं पवित्र है, जितनो तुम समझते हो। मैं नहीं चाहता था कि इस वक्त तुमसे ये बातें कहूँ। इसके लिए और अनुकूल परिस्थितियों को राह देख रहा था लेकिन मुआमला आ पहने पर कहना हो पड़ रहा है। मैं यह तो जानता था कि मानो का तुम्हारे घर में कोई आदर नहीं; लेकिन तुम लोग उसे इतना नोच और त्याज्य समझते हो, यह आज तुम्हारी माताजी को बातें सुनकर मालूम हुआ। केवल इतनी-सी बात के लिए कि वह चढ़ावे के गहने देखने चली गई थी, तुम्हारी माता ने उसे इस बुरी तरह मितड़का, जैसे कोई कुत्ते को भी न मिहकेगा। तुम कहोगे इसे मैं क्या करूँ, मैं कर हो क्या सकता हूँ जिस घर में एक अनाथ त्रो पर इतना अत्याचार हो, उप घर का पानी पीना भी हराम है। अगर तुमने अपनी माता को पहले ही दिन समझा दिया होता, तो आज यह नौवत न आतो : तुम इस इलजाम से नहीं बच सकते। तुम्हारे घर में आज विवाह का उत्सव है, मैं तुम्हारे माता-पिता से कुछ बात वोत नहीं कर सकता, लेकिन तुमसे कहने में कोई सोच नहीं है कि मैं मानो को अफ्नो जीवन-सहचरो बनाकर आने को धन्य समझंगा। मैंने समझा था अपना कोई ठिकाना करके तब यह प्रस्ताव करू गा; पर मुझे भय है कि और बिलम्ब करने में शायद मानो से हाथ धोना पड़े, इसलिए तुम्हें और तुम्हारे घरवालों को चिन्ता से मुक्त करने के लिए मैं आज हो यह प्रस्ताव किये देता हूँ।

गोकुल के हृदय में इन्द्रनाथ के प्रति ऐसो श्रद्धा कभी न हुई थी। उस पर ऐसा सन्देह करके वह बहुत ही लजित हुआ। उसने यह अनुमन भो किया कि माता के भय से मैं मानी के विषय में तटस्थ रहकर कायरता का दोषी हुआ हूँ। यह केवळ कायरता थी और कुछ नहीं। कुछ झेपता हुआ बोला-अगर अम्मा ने मानो,को इस बात पर झिड़का तो यह उनको मूर्खता है, मैं उनठे अवसर मिलते हो पूछू गा।

इन्द्रनाथ --- अब पूछने पाछने का समय निकल गया। मैं चाहता हूँ कि तुम मानो से इस विषय में सलाह करके मुझे बतला दो। मैं नहीं चाहता कि अब वह यहाँ क्षण-भर भी रहे। मुझे आज मालूम हुआ कि वह गर्विणी प्रकृति को स्त्री है