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दिल की रानी


ठण्डा करके तैमूर को दिखाना चाहता है कि सद्भावना में कितनी शक्ति है। तैमूर उसे इस मुहिम पर नहीं भेजना चाहता। लेकिन हबीब के आग्रह के सामने बेबस है। होम को जब और कोई युक्ति न सूझी, तो उसने कहा --- गुलाम के रहते हुए हुजूर अपनी जान खतरे में डालें यह नहीं हो सकता।

तैमूर मुस्कराया --- मेरी जान को तुम्हारी जान के मुकाबले में कोई हकीकत नहीं है हबीब। फिर मैंने तो कभी जान की परवाह न को। मैंने दुनिया में कल और लूट के सिवा और क्या यादगार छोड़ी। मेरे मर जाने पर दुनिया मेरे नाम को रोयेगी नहीं, यकीन मानो। मेरे-जैसे लुटेरे हमेशा पैदा होते रहेंगे, लेकिन खुदा न करे, तुम्हारे दुश्मनों को कुछ हो गया, तो यह सल्तनत खाक में मिल जायगी, और तब मुझे भी सोने में खंजर घुभा लेने के सिवा और कोई रास्ता न रहेगा। मैं नहीं कह सकता हबोध, तुमसे मैंने कितना पाया। काश, दस-पांच साल पहले तुम मुझे मिल जाते, तो तैमूर तवारीख में इतना रूसियाह न होता। आज अगर जरूरत पड़े तो मैं अपने जैसे सो तैमूरों को तुम्हारे ऊपर निसार कर दूं। यहो समझ लो कि तुम मेरी रूह को अपने साथ लिये जा रहे हो। आज मैं तुमसे कहता हूँ हबीब कि मुझे तुमसे इश्क है, वह इश्क जो मुझे आज तक किसी हसीना से नहीं हुआ। इक क्या चौल है, इसे मैं अब जान पाया हूँ। मगर इसमे क्या बुराई है कि मैं भी तम्हारे साथ चलूँ।

हबीब ने धड़कते हुए हृदय से कहा --- अगर मैं भापकी ज़रूरत समगा, तो इत्तला दूंगा।

तैमूर ने दाढ़ी पर हाथ रखकर कहा --- जैसी तुम्हारी मर्जी, लेकिन रोजाना क्रासिद भेजते रहना, वरना शायद मैं बेचैन होकर चला आऊँ।

तैमूर ने कितनी मुहब्बत से हबीब के सफर की तैयारियां को। तरह-तरह के आराम और तकल्लुफ की चोजें उसके लिए जमा की। उस कोहिस्तान में यह चीजें कहां मिलेंगी। वह ऐसा संलग्न था, मानों माता अपनी लड़की को ससुराल भेज रही हो।

जिस वक्त हबीब फौज के साथ चला, तो सारा समरकन्द उसके साथ था। जौर तैमूर आँखों पर रूमाल रखे, अपने तख्त पर ऐसा सिर झुकाये बैठा था, मानो कोई पक्षी आहत हो गया हो।

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