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मानसरोवर


कि तुम मुझे वह रास्ता दिखाओ, जिससे मैं सच्ची खुशी पा सकूँ। मैं चाहता हूँ, तुम इसी महल में रहो कि मैं तुमसे सच्ची जिन्दगी का सबक सीखू।

हबीब हृदय धक से हो उठा। कहीं अमौर पर उसके नारित्व का रहस्य खुन तो नहीं गया ? उसकी समझ में न भाया कि उसे क्या जवाब दे। उसका कोमल हृदय तैमूर को इस करुण आत्मग्लानि पर द्रवित हो गया। जिसके नाम से दुनिया कापतो है, वह उसके सामने एक दयनोयं प्रार्थी बना हुआ उससे प्रकाश को भिक्षा मांग रहा है। तैमूर की उस कठोर, विकृति, शुष्क, हिंसात्मक मुद्रा में उसे एक स्निग्ध मधुर ज्योति दिखाई दी, मानों उसका जाग्रत् विवेक भीतर से झांक रहा हो। उसे मपना स्थिर जीवन, जिसमें ऊपर उठने की स्फूति ही न रही थी, इस विफल उद्योग के सामने तुच्छ जान पड़ा।

उसने मुग्ध कण्ठ से कहा --- हुजूर इस गुलाम की इतनी कद्र करते हैं, यह मेरो खुशनसीबी है। लेकिन मेरा शाही महल में रहना मुनासिब नहीं।

तैमूर ने पूछा --- क्यों ?

'इसलिए कि जहाँ दौलत ज्यादा होती है, वहां डाके पाते हैं और जहाँ क्रन्द्र ज्यादा होती है, वहाँ दुश्मन भी ज्यादा होते हैं।'

'तुम्हारा दुश्मन भा कोई हो सकता है ?'

'मैं खुद अपना दुश्मन हो जाऊँगा। आदमी का सबसे बड़ा दुश्मन ग्ररूर है।'

तैमूर को जैसे कई रत्न मिल गया। उसे अपने मनातुष्टि का आभास हुआ। आदमी का सबसे बड़ा दुश्मन ग्रार है, इस वाक्य को मन-हो भन दोहराकर उसने कहा-तुम मेरे काबू में कभी न आओगे हो। तुम वह परन्द हो, जो आसमान में ही उड़ सकता है। उसे सोने के पिंजरे में भी रखना चाहो तो फड़फड़ाता रहेगा। खैर, खुदा हाफ़िज़।

वह तुरन्त अपने महल को भोर चला, मानों उस रत्न को सुरक्षित स्थान में रख देना चाहता हो। यह वाक्य आज पहली बार उसने न सुना था; पर आज इसमें जो शान, जो आदेश, जो सप्रेरणा से मिली, वह कभी न मिली थी।

( ६ )

इस्तसर के इलाके से बगावत की खबर आई है। हबीब को शंका है कि तमर वहाँ पहुँचकर कहीं कत्लेआम न कर दे। वह शान्तिमय उपार्यों से इस विद्रोह को