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मानसरोवर


ये कारनामे इसी लायक है कि उनका यह इनाम मिले ? इस खयाल को दिल से निकाल दे कि तू खूरेली से इस्लाम की खिदमत कर रहा है। एक दिन तुझे भी परवरदिगार के सामने कर्मों का जवाब देना पड़ेगा और तेरा कोई उन न सुना जायगा क्योंकि अगर तुझमें अब भी नेक और बद की तमीज़ बाकी है, तो अपने दिल से पूछ ! तूने यह जिहाद खुदा की राह में किया या अपनी हवस के लिए, और मैं जानता हूँ, तुझे जो जवाम मिलेगा, वह तेरी गर्दन शर्म से झुका देगा।'

ख़लीफा अभी सिर झुकाये ही था कि यजदानी ने कांपते हुए शब्दों में अर्ज को-जहाँपनाह, यह गुलाम का लड़का। इसके दिमाग में कुछ फितूर है, हुजूर इसकी गुस्ताखियों को मुआफ करें। मैं उसकी सजा झेलने को तैयार हूँ।

तैमूर उस युवक के चेहरे की तरफ़ स्थिर नेत्रों से देख रहा था। आज जीवन में पहले बार उसे ऐसे निभीक शब्दों के सुनने का अवसर मिला। उसके सामने बड़े. बड़े सेनापतियों, मन्त्रियों और बादशाहों की ज़बान न खुलती थी। वह जो कुछ करता या कहता था, वही कानून था, किसी को उसमें यूँ करने की ताकत न थो उनकी खुशामदों में उसको अहम्मन्यता को आसमान पर चढ़ा दिया था। उसे विश्वास हो गया था कि खुदा ने उसे इस्लाम को जगाने और सुधारने के लिए ही दुनिया में भेजा है। उसने पैगम्बरी का दावा तो नहीं किया, पर उसके मन में यह भावना दृढ़ हो गई थी। इसलिए जब आज एक युवक ने प्राणों का मोह छोड़कर उसकी कोति का पश्दा खोल दिया तो उसकी चेतना जैसे जाग उठी। उसके मन में क्रोध और हिमा की जगह श्रद्धा का उदय हुआ। उसको आँखों का एक' इशारा इस युवक को जिन्दगी का चिराय गुल कर सकता था। उसको समार-विजयिनी शक्ति के सामने यह दुधमुंहा बालक मानों अपने नन्हे-नन्हें हार्थों से समुद्र के प्रवाह को रोकने के लिए खड़ा हो। कितना हास्यास्पद साहस था , पर उसके साथ हो कितना आत्मविश्वास से भरा हुआ। तैमूर को ऐसा जान पड़ा कि इस निहत्थे बालक के सामने वह कितना निर्बल है। मनुष्य में ऐसे साइस का एक ही स्रोत हो सकता है और वह सत्य पर अटल विश्वास है। उसको आत्मा दौड़कर उस युवक के दामन में चिमट जाने के लिए अधीर हो गई। वह दार्शनिक न था. जो सत्य में भी शक करता है। वह सरल सैनिक था.वो असत्य को भी अपने विश्वास से सत्य बना देता है।