जैसे नाच रहा है। उसे मालूम हुआ , जैसे उसका शरीर लुप्त हो गया है, केवल वह
एक मधुर स्वर की भौति विश्व की गोद से चिमट हुआ उसके साथ नृत्य कर
रहा है।
रुपिया ने फिर कहा --- अभी से सो गये क्या जी ?
मोइन बोला --- हाँ, जरा नींद आ गई थी रूपा ! तुम इस वक्त क्या करने आई!
कहीं अम्माँ देख लें, तो मुझे मार ही डालें।
'तुम आज भाये क्यों नहीं?
'आज अम्मां से लड़ाई हो गई।'
'क्या कहती थी ?
'कहती थी, रुपिया से बोलेगा तो मैं परान दे दूंगी।'
'तुमने पूछा नहीं, रुपिया से क्यों चिढ़ती हो?'
'अब उनकी बात क्या कहूँ रूपा। वह किसी का खाना-पहनना नहीं देख सकता। अब मुझे तुमसे दूर रहना पड़ेगा।'
'मेरा जी तो न मानेगी।'
'ऐसी बात करोगी, तो मैं तुम्हें लेकर भाग जाऊँगा।'
'तुम मेरे पास एक बार रोज भा जाया करो। बस, और मैं कुछ नहीं चाहती।'
'और अम्माँ जो बिगड़ेंगी ?'
'तो मैं समझ गई। तुम मुझे प्यार नहीं करते।'
'मेरा घस होता तो तुमको अपने परान में रख लेता।'
इसी समय घर के किवाड़ खटके। रुपिया भाग गई।
( २ )
मोहन दृसरे दिन सोकर उठा तो उसके हृदय में आनन्द का सागर-सा भरा हुआ था। वह सोहन को बराबर डाँटता रहता था। सोहन भाळसी था। घर के काम- धन्धे में जो न लगता था। आज भी वह मांगन में बैठा अपनी धोती में साबुन लगा रहा था। मोहन को देखते ही वह सावुन छिपाकर भाग जाने का अवसर खोजने लगा।
मोहन ने मुस्कराकर कहा --- क्या धोती बहुत मैली हो गई है सोहन ? धोबी को क्यों नहीं दे देते?