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ज्योति


इन लड़कों के कारन त्याग दिया और आज मोहन उसे बुढ़िया कहता है। रुपिया उसके सामने खड़ी कर दो जाय, तो चुहिया-सी लगे। फिर भी वह जवान है, और बूटी बुढ़िया है।

बोलो --- हाँ और क्या ! मेरे लिए तो अब फटे-चीथड़े पहनने के दिन है। जब तेरा बाप मरा तो मैं रुपिया से दो होबार साल बड़ी थी। उस वक्त कोई घर कर लेती, तो तुम लोगों का कहीं पता न लगता। गली-नालो भीख माँगते फिरते। लेकिन मैं कहे देती हूँ, अगर तू फिर उससे बोला तो या तो तू हो घर में रहेगा या मैं हो रहूँगी।

मोहन ने डरते-डरते कहा --- मैं उसे बात दे चुका हूँ अम्माँ ?

'कैसी बात ?'

'सगाई की।'

'अगर रुपिया मेरे घर में आई, तो झाड़ू मारकर निकाल दूंगी। यह सब उसकी मां की माया है। वही कुठनी मेरे लड़के को मुझसे छोने लेती है। रांड से इतना भी नहीं देखा जाता। चाहती है कि उसे सौत बनाकर छाती पर बैठा दे।'

मोहन ने व्यथित कण्ठ से कहा --- अम्माँ, ईश्वर के लिए चुप रहो। क्यों अपना णनी आप खो रहो हो। मैंने तो समझा था, चार दिन में मैना अपने घर चली जायगी, तुम अकेली पड़ जाओमी। इसलिए उसे लाने की बात सोच रहा था। अगर तुम्हें बुरा लगता है तो जाने दो।

'तू आज से यही आँगन में सोया कर।'

'और गाय-भैसें बाहर पड़ी रहेंगी?'

'पड़ी रहने दे। कोई डाका नहीं पड़ा जाता।'

'मुझ पर तुझे इतना सन्देह है ?'

'तो मैं यहाँ न सोऊंगा।

'तो निकल जा मेरे घर से।'

'हाँ, तेरी यही इच्छा है तो निकल जाऊँगा।'

मैना ने भेजन पकाया। मोहन ने कहा, मुझे भूख नहीं है ! बूटी उसे मनाने के आई। मोइन का युवक-हृदय माता के इस कठोर शासन को किसी तरह स्वीकार नहींं