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२१
अलग्योझा


झेले, उन्हीं से अलग हो जाऊँ : अपने प्यारो को घर से निकाल बाहर करू। उसका गला फंस गया। काँपते हुए स्वर में बोला---तू क्या चाहता है कि मैं अपने भाइयों से अलग हो जाऊँ ? भला सोच तो, कहीं मुंह दिखाने लायक रहूँगा।

मुलिया---तो मेरा इन लोगों के साथ निबाह न होगा।

रग्घू---तो तू अलग हो जा। मुझे अपने साथ क्यों घसीटती है।

मुलिया तो मुझे क्या तुम्हारे घर में मिठाई मिलती है, मेरे लिए क्या ससार में जगह नहीं है ?

रग्धू---तेरी जैसी मर्जी, जहाँ चाहे रह। मैं अपने घरवालों से अलग नहीं हो सकता है जिस दिन इस घर मे दो चूल्हे जलेंगे, उस दिन मेरे कलेजे के दो टुकड़े हो जायेंगे। मैं यह चोट नहीं सह सकता। तुझे जो तकलीफ हो, वह मैं दूर कर सकता हूँ। साल-असबाव की मालकिन तू है हो अनाज-पानी तेरे हों हाथ है, अर्थ रह झ्या गया है ? अगर कुछ कम-धन्धा करना नहीं चाहती, मत कर। भगवान् ने मुझे समाई दी होती, तो मैं तुझे तिनका तक उठाने न देता। तेरे यह सुकुमार हाथ-पाँव मेहनत-मजूरी करने के लिए बनाये ही नहीं गये हैं, मगर क्या करूं, अपना कुछ बस ही नहीं है। फिर भी तेरा जी कोई काम करने को न चाहे, मत कर ; मगर मुझसे अलग होने को न कह, तेरे पैरों पढ़ता हूँ।

मुलिया ने सिर से अञ्चल खिसकाया और ज़रा समीप आकर बोली---मैं काम करने से नहीं डरती, न बैठे-बैठे खाना चाहती हैं, मगर मुझसे किसी की धौंस नहीं सही जाती। तुम्हारी ही काकी घर का काम-काज करती हैं, तो अपने लिए करती हैं, अपने बाल-बच्चों के लिए करती हैं।, मुझ पर कुछ एहसान नहीं करतीं। फिर मुझ पर धौस क्यों जमाती हैं हैं उन्हें अपने बच्चे प्यारे होंगे, मुझे तो तुम्हारा आसरा है। मैं अपनी आँखों से यह नहीं देख सकती कि सारा घर तो चैन करें, जरा-जरा-से वचे तो दूध पीयें, और जिसके वल-बूते पर गृहस्थी बनी हुई है, वह मट्ट को तरसे। कोई उसका पूछनेवाला न हो। ज़रा अपना में है तो देखो, कैसी सूरत निकल आई है। औरों के तो चार बरस में अपने पड़े तैयार हो जायेंगे। तुम तो दस साल में खाट पर पड़ जाओगे। वैठ जाओ, खड़े क्यों हों ? क्या मारकर भागोगे ? मैं तुम्हें ज़रदस्ती न बाँध लेंगी, या मालकिन का हुक्म नहीं है ? सच कहूँ, तुम बड़े झूठ-लेजी हो। मैं जानती, ऐसे निमेहिये से पाला पड़ेगा, तो इस घर में भूल से न आती।