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नशा


रहे थे। एक महाशय बोले-ऐसा न्याय तो किसी राज्य में नहीं देखा। छोटे-बड़े सब बराबर। राजा भी किसी पर अन्याय करे, तो अदालत उसको भी गर्दन दया देती है।

दुसरे सज्जन ने समर्थन किया --- अरे साहब, आप खुद बादशाह पर दावा कर सकते हैं। अदालत में मादशाह पर डिग्री हो जाती है।

एक आदमी, जिसकी पीठ पर बड़ा-सा गट्ठर बांधा था, कलकत्ते जा रहा था। कहीं गठरी रखने की जगह न मिलती थी। पीठ पर बांधे हुए था। इससे बेचन होकर भार-बार द्वार पर खड़ा हो जाता। में द्वार के पाय हो वठा हुआ था। उसका बार-बार जाकर मेरे मुंह को भरनो गठरी से रगड़ना मुझे बहुत बुरा ला रहा था। एक तो हवा योहो कम थी, दूसरे उस गवार सा आकर मेरे मुंह पर खड़ा हो जाना माना मेरा गला दबाना था। मैं कुछ देर तक जन्त किये बठा रहा। एकाएक मुझे क्रोध आ गया। मैंने उसे पकड़कर पीछे ढकेल दिया और दो तमाचे जोर शोर से लगाये।

उसने पाखें निकालकर कहा --- क्यों मारते हो बाबूजी, हमने भी गिराया दिया है।

मैंने उठकर दो-तीन तमाचे और जस दिये ्।

गाड़ी में तूफ़ान आ गया। चारों ओर से मुम पर बौछार पड़ने लगी।

'अगर इतने नाजुक-मिजाम हो, तो अब्बल दर्जे मस्या नहीं बठे?'

'कोई बड़ा आदमी होगा तो अपने घर का होगा। मुझे इस तरह मारते, तो दिखा देता।

'क्या कसूर किया था बेचारे ने ? गाड़ी में सांस लेने को जगह नहीं, खिड़को पर जारा साँस लेने सड़ा हो गया तो उस पर इतना काध! अमीर होकर क्या आदलो अपनी इन्सानियत बिलकुल खो देता है ?

'यह भी अंगरेजी राज है, जिसका थाप बखान कर रहे थे।'

एक प्रामीण गोला-दफ्तरन मा घुस पाचत नहीं, उस पे इत्ता मिजाज !

ईश्वरी ने अग्रेजी में कहा --- What an idiot you are Bir!

और मेरा नशा अब कुछ-कुछ उतरता हुआ मालूम होता था।