कौन पढ़ता है। बोडिङ्गहाउस में भूत की तरह अकेले पड़े रहने को भी जी न चाहता
था। इसलिए जब ईश्वरी ने मुझे अपने घर चलने का नेवता दिया, तो मैं बिना
आग्रह के राजो हो गया। ईश्वरी के साथ परीक्षा की तैयारी खूब हो जायगी। वह
अमीर होकर भी मेहनती और जहीन है।
उसने इसके साथ ही कहा लेकिन भाई, एक बात का ख्याल रखना। वहीं अगर ज़मीदारों को निन्दा को तो मुआमिला बिगड़ जायगा और मेरे घरवालों को बुरा लगेगा। वह लोग तो असामियों पर इसी दावे से शासन करते हैं कि ईश्वर ने असामियों को उनकी सेवा के लिए ही पदा ख्यिा है। असामी भी यही समझता है। अगर उसे सुम्सा दिया जाय हि ज़मींदार और असामी में कोई मौलिक भेद नहीं है, तो ज़मींदारों का कहीं पता न लगे।
मैंने कहा --- तो क्या तुम समझते हो कि मैं वहाँ जाकर कुछ और हो जाऊंगा?
'हाँ, मैं तो यहो समझता हूँ।'
'तुम गलत समझाते हो।'
ईश्वरी ने इसका कोई जवाब न दिया। कदाचित् उसने इस मुआमले को मेरे विवेक पर छोड़ दिया। और बहुत अच्छा किया। अगर वह अपनी बात पर अड़ता, तो मैं भी ज़िद पकड़ लेता।
( २ )
सेकेण्ड क्लास तो क्या, मैंने कभी इण्टर क्लास से भी सफर न किया था। अब -
की सेकेण्ड क्लास में सफर करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। गाहो तो नौ बजे रात को
आती थी, पर यात्रा के दर्ष में हम शाम को हो स्टेशन जा पहुँचे। कुछ देर इधर-
उघर सैर करने के बाद रिफ्रेशमेण्ट रूम में जाकर हम लोगों ने भोजन किया मेरी
वेष-भूषा और रग ढग से पारखो खानसामों को यह पहचानने में देर न लगा कि
मालिक कौन है और पिछ-लागू कीन, लेकिन न जाने क्यों मुझे उनको गुस्ताखी बुरी
लग रही थी। पैसे ईश्वी के जेब से गये। शायद मेरे पिता को जो वेतन मिलता
है, उससे ज्यादा इन खानसामों को इनाम-इकराम में मिल जाता हो। एक अठन्नी तो
चलते समय ईश्वरो हो ने दी। फिर भी मैं उन सभों से उसी तत्परता और विनय
को प्रतीक्षा करता था, जिससे वे ईश्वरी को सेवा कर रहे थे। क्यों ईश्वरो के हुक्म
पर सब-के-सब दौड़ते हैं, लेकिन मैं कोई चीज़ मांगता हूँ तो उतना उत्साह नहीं