११४ मानसरोवर 1 राणा ने सिंह के समान गरजकर कहा-दूर हट | क्षत्रिय स्त्रियों पर हाथ नहीं उठाते। राजकुमार ने तनकर उत्तर दिया-लज्जाहीन स्त्रियों की यही सजा है। राणा ने कहा- तुम्हारा वैरी तो मैं था। मेरे सामने आते क्यों लजाते थे ? जरा मैं भी तुम्हारी तलवार की काट देखता। राजकुमार ने ऐंठकर राणा पर तलवार चलायी। शस्त्र विद्या में राणा अति कुशल थे । घार खाली देखकर राजकुमार पर झपटे। इतने में प्रभा, जो मुछित अवस्था में दीवार से चिमटी खड़ी थी, बिजली की तरह कौधकर राजकुमार के सामने खड़ी हो गई । राणा वार कर चुके थे। तलवार का पूरा हाथ उसके कन्धे पर पड़ा । रक्त की फुहार छूटने लगी। राणा ने एक ठण्डी साँस ली और उन्होंने तलवार हाथ से फेंकवर गिरती हुई प्रभा को संभाल लिया। क्षणमात्र में प्रभा का मुखमण्डल वर्ण हीन हो गया। आँखें बुझ गयीं। दीपक ठण्डा हो गया । मन्दार कुमार ने भी तलवार फेंक दी और वह आँखों में ऑम् भर प्रभा के सामने घुटने टेककर बैठ गया। दोनों प्रेमियों की आँखें । सजल थीं । पतिंगे बुझे हुए दीपक पर जान दे रहे थे। प्रेम के रहस्य निराले हैं। अभी एक क्षण हुआ, राजकुमार प्रभा पर तलवार लेकर झपटा था। प्रभा किसी प्रकार उसके साथ चलने पर उद्यत न होती थी। लज्जा का भय, धर्म की वेडी, कर्तव्य की दीवार, रास्ता रोके खड़ी थी। परन्तु उसे तल्वार के सामने देखकर उसने उस पर अपना प्राण अर्पण कर दिया । प्रीति की प्रथा निबाह दी, लेकिन अपने वचन के साथ उसी घर हाँ, प्रेम के रहस्य निराले हैं । अभी एक क्षण पहले राजकुमार प्रभा पर तलवार लेकर झपटा था । उसके खून का प्यासा था । ईर्ष्या की श्रमि उसके हृदय में दहक रही थी। वह रुधिर की धारा से शान्त हो गयी। कुछ देर तक वह अचेत बैठा रोता रहा। फिर उठा और उसने तलवार उठाकर जोर से अपनी छाती में चुभा ली। फिर रक्त की फुहार निकली। दोनों धारायें मिल गयीं और उनमें कोई भेद न रहा । प्रभा उसके साथ चलने पर राजी न थी। किन्तु वह प्रेम के बन्धन को तोड़ न सकी । दोनों उस घर ही से नहीं, ससार से एक साथ सिधारे ।
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