मानसरोवर सब कुछ कर सकते हैं। मैंने परीक्षार्थ उन्हें यह काम सौंपा था। अनुभव ने सिद्ध कर दिया कि वह इस कार्य के सर्वथा योग्य हैं। ऐसा जान पड़ता है कि कुलपरम्परा ने उन्हें इस काम के लिए अभ्यस्त कर दिया है । जिस समय उन्होंने इसका काम अपने हाथ में लिया, यह रियासत एक ऊजड़ ग्राम के सदृश थी। अब वह धनधान्यपूर्ण एक नगर है। शासन का कोई ऐसा विभाग नहीं, जिस पर उनकी सूक्ष्म दृष्टि न पहुँची हो । थोड़े ही दिनों में लोग उनके शील-स्वभाव पर मुग्ध हो गये और राजा रणधीरसिंह भी उन पर कृपा-दृष्टि रखने लगे। पण्डितजी पहले शहर से वाहर एक ठाकुर द्वारे में रहते थे। किन्तु जब राजा साहब से मेल जोल बढ़ा तो उनके आग्रह से विवश होकर राजमहल में चले आये। यहाँ तक परस्पर में मैत्री और घनिष्ठता बढ़ी कि मान-प्रतिष्ठा का विचार भी जाता रहा । राजा साहब पण्डितजी से सम्कृत भी पढ़ते थे और उनके समय का अधिकाश भाग पण्डितजी के मकान पर ही कटता था , किन्तु शोक ! यह विद्याप्रेम या शुद्ध मित्रभाव का आकर्षण न था । यह सौंदर्य का आकर्पण था। यदि उस समय मुझे लेशमात्र भी संदेह होता कि रणधीरसिंह की यह घनिष्ठता कुछ और ही पहलू लिये हुए है तो उसका अन्त इतना खेदजनक न होता जितना कि हुा । उनकी दृष्टि विद्याघरी पर उस समय पड़ी जब वह ठाकुरद्वारे में रहती थी और यह सारी कुयोजनाएँ उसी का करामात थीं। राजा साहब स्वभावतः बड़े ही सच्चरित्र और सयमी पुरुष हैं, किन्तु जिस रूप ने मेरे पति जैसे देवपुरुप का ईमान डिगा दिया, वह कुछ कर सकता भोली-भाली विद्याधरी मनोविकारो की इस कुटिल नीति से वेखबर थी। जिस प्रकार छलाँगे गरता हुआ हीरन व्याध की फैलाई हुई हरी हरी घास से प्रसन्न होकर उस ओर बढ़ता है और यह नहीं समझता कि प्रत्येक पग मुके सर्वनाश की ओर लिये जाता है, उसी भाँति विद्याधरी को उसका चचल मन अन्धकार की ओर खींचे लिये जाता था। वह राजा साहब के लिए अपने हाथों से बीड़े लगाकर भेजती, पूजा के लिए चन्दन रगड़ती। रानीजी से भी उसका बहनापा हो गया । वह एक क्षण के लिए भी उसे अपने पास से न जाने टेती । दोनों साथ-साथ बाग की सैर करती, साथ-साथ झूला झूलती, साथ-साथ चौपड़
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