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६ मानसरोवर
भी थी जब मेरी प्यारी पत्नी अपनी मधुर बातों और कोमल कटाक्षों से मेरे हृदय को प्रफुल्लित किया करती थी। और जब कि मेरे युवा पुत्र प्रातःकाल आकर अपने वृद्ध पिता को समक्ति प्रणाम करते, उस समय भी मेरे हृदय में एक काँटा सा खटकता रहता था कि मैं अपनी मातृभूमि से अलग हूँ | यह देश मेरा देश नहीं है और मैं इस देश का नहीं हूँ।
मेरे धन था, पत्नी थी, लड़के थे और जायदाद थी , मगर न मालूम क्यों, मुझे रह-रह कर मातृभूमि टूटे फूटे झोपड़े, चार छै बीघा मौरूसी जमीन और बालपन के लँगोटिया यारों की याद अक्सर सता जाया करती। प्रायः अपार प्रसन्नता और आनन्दोत्सवों के अवसर पर भी यह विचार हृदय में चुटकी लिया करता था कि “यदि मैं अपने देश में होता तो .. ।"
( २) जिस समय मैं बम्बई में जहाज से उतरा, मैंने पहिले काले काले कोट पतलून पहिने टूटी फूटी अंग्रेजी बोलते हुए मल्लाह देखे । फिर अँग्रेजी दूकानें, ट्राम और मोटरगाड़ियाँ दीख पड़ीं। इसके बाद रबरटायरवाली गाड़ियों की और मुँह में चुरट दावे हुए आदमियों से मुठमेड़ हुई । फिर रेल का विक्टोरिया टर्मिनस स्टेशन देखा । बाद मैं रेल में सवार होकर हरी हरी पहाड़ियों के मध्य में स्थित अपने गाँव को चल दिया । उस समय मेरी आँखों में आँसू भर आये और मैं खूब रोया, क्योंकि यह मेरा देश न था। यह वह देश न था, जिसके दर्शनों की इच्छा सदा मेरे हृदय में लहराया करती थी। यह तो कोई और देश या। यह अमेरिका या इग्लैण्ड था, मगर प्यारा भारत नहीं था । रेलगाड़ी जङ्गलों, पहाड़ों, नदियों और मैदानों को पार करती हुई मेरे प्यारे गाँव के पास पहुँची, जो किसी समय में फूल, पत्तों और फलों की बहुतायत तथा नदी-नालों की अधिकता से स्वर्ग की होड़ कर रहा था। मैं जब गाड़ी से उतरा, तो मेरा हृदय बाँसों उछल रहा था- अब अपना प्यारा घर देखूँगा,-अपने बालपन के प्यारे साथियों से मिलूँगा । मैं इस समय बिल्कुल भूल गया था कि मैं ६० वर्ष का बूढ़ा हूँ । ज्यों-ज्यों मैं गाँव के निकट आता था, मेरे पग शीघ्र शीघ्र उठते थे और हृदय में अकथनीय आनन्द का स्रोत उमड़ रहा था। प्रत्येक वस्तु पर आँखें फाड़-फाड़कर दृष्टि