२६६ मानसरोवर बादशाह- हजरत इमाम की कुसम, मैं यह जिल्लत न बर्दाश्त करूँगा। मैं अपने बुजुर्गों का नाम न डुवाऊँगा । रोशन-आपके बुजुर्गों के नाम की फिक्र हमें आपसे ज्यादा है । आपकी ऐश परस्ती बुजुर्गों का नाम रोशन नहीं कर रही है। बादशाह ( दीनता से)- मैं वादा करता हूँ कि आइन्दा से आप लोगों को शिकायत का कोई मौका न दूंगा। रोशन-नशेबाजों के वादों पर कोई दीवाना ही यकीन कर सकता है ? बादशाह-तुम मुझे जवरदस्ती तख्त से नहीं उतार सकते । रोशन-इन धमक्यिों की जरूरत नहीं। चुप चाप चले चलिए , आगे आपको सेज-गाड़ी मिल जायगी। हम आपको इज्जत के साथ रुखसत करेंगे। बादशाह-आप जानते हैं, रिआया पर इसका क्या असर होगा ? रोशन- खूब जानता हूँ ' आपकी हिमायत में एक उँगली भीन उठेगी । कल सारी सल्तनत में घी के चिराग जलेंगे। इतनी देर में सब लोग उस स्थान पर आ पहुँचे, जहाँ बादशाह को ले जाने के लिए सवारी तैयार खड़ी थी। लगभग २५ सशस्त्र गोरे सिपाही भी खड़े थे । बादशाह सेज गाड़ी को देखकर मचल गये। उनके रुधिर की गति तीव्र हो गयी, भोग और विलास के नीचे दबी हुई मर्यादा सजग हो गयी। उन्होंने जोर से झटका देकर अपना हाथ छुड़ा लिया और नैराश्य पूर्ण दुस्साहस के साथ, परिणाम भय को त्यागकर, उच्च स्वर से बोले-ऐ लखनऊ के बस्नेवालों! तुम्हारा वादशाह यहाँ दुश्मनों के हाथों कत्ल किया जा रहा है । उसे इनके हाथ से बचायो, दोड़ो, वर्ना पछताओगे ! यह आर्त पुकार अाकाश की नीरवता को चीरती हुई गोमती की लहरों में विलीन नहीं हुई वल्कि लखनऊ वालों के हृदयों मे जा पहुँची। राजा बख्तावरसिह बदी गृह से निकलकर नगर-निवासियों को उत्तेजित करते और प्रतिक्षण रक्षाकारियों के दल को बढ़ाते, बड़े वेग से दौड़े चले आ रहे थे। एक पल का विलम्ब भी षडयत्रकारियों के घातक विरोध को सफल कर सकता था। देखते-देखते उनके साथ दो तीन हजार सशस्त्र मनुष्यों का दल हो गया था। यह सामूहिक शक्ति बादशाह का और लखनऊ राज्य का उद्धार कर सकती थी।
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