पृष्ठ:मानसरोवर भाग 6.djvu/२३७

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२६० मानसरोवर वतान- गजब क्या हो गया १ इनकी जात से किसे श्राराम या १ दुसरी हुमत चाहे कितनी ही खराब हो, इससे अच्छी ही होगी। राजा-अंग्रेजों की हुकूमत होगी ? कप्तान-अंग्रेज इनसे कहीं वेहतर इन्तजाम करेंगे। राजा ( करुण स्वर से)-कप्तान ! ईश्वर के लिए ऐसी बातें न करो। तुमने मुझसे जरा देर पहले क्यों न यह कैफियत बयान की ? कप्तान ( आश्चर्य से )-आपके साथ तो बादशाह ने कोई अच्छा सलूक नहीं किया! राजा-मेरे साथ कितना ही बुरा सलूक किया हो, लेकिन एक राज्य की कीमत एक श्रादमी या एक खानदान की जान से कहीं ज्यादा होती है। तुम मेरे पैरों की बेड़ियाँ खुलवा सकते हो ? कप्तान-सारे अवध राज्य मे एक भी ऐसा आदमी न निकलेगा, जो बादशाह को सच्चे दिल से दुआ देता हो। दुनिया उनके जुल्म से तग श्रा 1 गयी है। राजा-मैं अपनों के जुल्म को गैरों की बदगी से कहीं बेहतर खयाल करता हूँ । बादशाह की यह हालत गैरों ही के भरोसे पर हुई है । वह इसी लिए किसी की पर्वा नहीं करते कि उन्हें अंग्रेजों की मदद का यकीन है । मैं इन फिर गियों की चालों को गौर से देखता आता हूँ। बादशाह के मिजाज को उन्होने बिगाड़ा है । उनका मशा यही था जो हुया । रिआया के दिल से बादशाह की इज्जत और मुहब्बत उठ गयी। अाज सारा मुल्क बगावत करने पर आमादा है । ये लोग इसी मौके का इन्तजार कर रहे थे। वह जानते हैं कि बादशाह की माजुली ( गद्दी से हटाये जाने , पर एक श्रादमी भी श्रीसू न बहावेगा । लेकिन मै जताये देता हूँ कि अगर इस वक्त तुमने बादशाह को दुश्मनों के हायों से न बचाया, तो तुम हमेशा के लिए अपने ही वतन में गुलामी की जजीरों में बँध जाश्रोगे । किसी गैर कौम के चाकर बनकर अगर तुम्हें आफ़ियत (शाति ) भी मिली, तो वह आफ़ियत न होगी, मौत होगी। गैरों के बरहम पैरों के नीचे पड़कर तुम हाय भी न हिला सकोगे, और यह उम्मीद कि कभी हमारे मुल्क में आईनी सल्तनत (वैध शासन ) कायम होगी,