पापा २२५. या। जहाँ-तहाँ श्यामवस्त्राच्छादित देवताओं की पूजा हो रही थी। चाँदपार के किसान मुण्ड के मुबह एक पेड़ के नीचे आकर बैठे। उनसे कुछ दूर पर कुँवर साहब के मुखनार श्राम, सिपाहियों और गवाहों की भीड़ थी। ये लोग अत्यन्त विनोद में थे। जिस प्रकार मछलियों पानी में पहुँचकर कलोलें करती हैं, उसी भाँति ये लोग भी आनन्द में चूर थे। कोई पान खा रहा था। कोई हलवाई की दूकान से पूरियों की पत्तल लिये चला आता था। उधर वेचारे किसान पेड़ के नीचे चुपचाप उदास बैठे थे कि श्राज न जाने क्या होगा, कोन श्राफ़त आयेगी ! भगवान् का भरोसा है । मुकदमे की पेशी हुई। कुँवर साहब की अोर से गवाह गवाही देने लगे कि असामी बडे सरकश हैं। जब लगान माँगा जाता है तो लड़ाई-झगड़े पर तैयार हो जाते है। अबकी इन्होने एक कौड़ी भी नहीं दी। कादिर खा ने रोकर अपने सिर की चोट दिखाई। सबसे पीछे पण्डित दुर्गानाथ की पुकार हुई । उन्हीं के बयान पर निपटारा होना था। वकील साहब ने उन्हें खूब तोते की भाँति पढ़ा रखा था, किन्तु उनके मुख से पहला वाक्य निकला ही था कि मैजिस्ट्रेट ने उनकी ओर तीन दृष्टि से देखा। वकील साहद बगलें झाँकने लगे। मुख्तार-आम ने उनकी ओर घूरकर देखा । अहलमद- पेशकार आदि सब के सब उनकी ओर आश्चर्य की दृष्टि से देखने लगे। न्यायाधीश ने तीव्र स्वर से कहा-तुम जानते हो कि मैजिस्ट्रेट के सामने खड़े हो। दुर्गानाथ (दृढ़तापूर्वक )-जी हॉ, भलीभाँति जानता हूँ। न्याया--तुम्हारे ऊपर असत्य मापण का अभियोग लगाया जा सकता है। दुर्गानाथ-अवश्य, यदि मेरा कथन झूठा हो। वकील ने कहा-जान पड़ता है, किसानों के दूध, घी और भेंट आदि ने यह काया-पलट कर दी है । और न्यायाधीश की और सार्थक दृष्टि से देखा। दुर्गानाथ-आपको इन वस्तुओं का अधिक तजुर्वा होगा। मुझे तो अपना इसी रोटिया ही अधिक प्यारी हैं। न्यायाधीश-तो इन असामियों ने सय रुपया चैवाक कर दिया है। दुर्गानाथ-जी हाँ, इनके जिम्मे लगान की एक कोही भी याका नहीं है।
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