२२२ मानसरोवर था । इतने में दो वालटियर झण्डियाँ लिये हुए उनकी दूकान के सामने आकर खड़े हो गये। सेठजी ने डॉटकर कहा-हट जाश्रो हमारी दूकान के सामने से । एक वालटियर ने उत्तर दिया-महाराज, हम तो सड़क पर हैं । क्या यहाँ से भी चले जाय? सेठजी-मैं तुम्हारी सूरत नहीं देखना चाहता । वाल टियर- तो श्राप काग्रेस कमेटी को लिखिए । हमको तो वहाँ से यहाँ खड़े रहकर पहरा देने का हुक्म मिला है । एक कान्सटेबिल ने आकर कहा-क्या है सेठजी है यह लौडा क्या टर्सता है। चन्दूमल बोले-मैं कहता हूँ कि दूकान के सामने से हट जाओ, पर यह कहता है कि न हटेंगे। जरा इसकी जबरदस्ती देखो। कान्सटेबिल-(वालटियरों से ) तुम दोनों यहाँ से जाते हो कि श्राकर गरदन नायूँ ? वालटियर - हम सड़क पर खड़े हैं, दुकान पर नहीं । कान्सटेबिल का अमीष्ट अपनी कारगुजारी दिखाना था। वह सेठजी को ख़ुश करके कुछ इनाम-इकराम भी लेना चाहता था। उसने वालटियरों को अपशब्द कहे और जब उन्होंने उसकी कुछ परवा न की तो एक वालटियर को इतने जोर से धक्का दिया कि वह बेचारा मुंह के बल जमीन पर गिर पड़ा। कई वालटियर इधर उधर से श्राकर जमा हो गये । कई सिपाही भी आ पहुँचे । दर्शकवृन्द को ऐसी घटनाओं में मजा आता ही है। उनकी भीड़ लग गयी । किसी ने हाँक लगाई 'महात्मा गाँधी की जय' । औरों ने भी उसके सुर में सुर मिलाया, देखते-देखते एक जनसमूह एकत्रित हो गया । एक दर्शक ने कहा-क्या है लाला चन्दूमल १ अपनी दूकान के सामने इन गरीबों की यह दुर्गति करा रहे हो, और तुम्हें ज़रा भी लबा नहीं पाती ? कुछ भगवान् का भी डर है या नहीं ? सेठजी ने कहा-मुझसे कुसम ले लो जो मैंने किसी सिपाही से कुछ कहा हो । ये लोग अनायास वेचारों के पीछे पड़ गये । मुझे सेंत में बदनाम करते हैं।
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