मानसरोवर कवि का रसास्वादन-मात्र था। वह पवित्र और वासनाओं से रहित था । वह मूर्ति केवल उनके मनोरंजन की सामग्री-मात्र थी। वह अपने मन को बहुत समझाते, संकल्प करते कि अब मगला को प्रसन्न रखूगा। यदि वह सुन्दरी नहीं है तो उसका क्या दोष १ पर उनका यह सब प्रयास मगला के सम्मुख जाते ही विफल हो जाता था। वह बड़ी सूक्ष्म दृष्टि से मगला के मन के बदलते हुए भावों को देखते थे , पर एक पक्षाघात पीड़ित मनुष्य की भाँति घी के घड़े को लुढ़कते देखकर भी रोकने का कोई उपाय न कर सकते थे। परिणाम क्या होगा, यह सोचने का उन्हें साहस ही न होता था। पर जब मगला ने अत को वात-बात में उनकी तीव्र आलोचना करना शुरू कर दिया, वह उनसे उच्छृङ्खलता का व्यवहार करने लगी, तो उसके प्रति उनका वह उतना सौहार्द्र भी विलुप्त हो गया । घर में आना-जाना ही छोड़ दिया । एक दिन सध्या के समय बड़ी गरी थी। पखा झलने से आग और भी दहकती थी। कोई सैर करने बगीचे में भी न जाता था। पसीने की भाँति शरीर से सारी स्फूर्ति बह गयी थी, जो जहाँ था, वहीं मुर्दा सा पड़ा था। आग ५ से सेंके हुए मृदग की माति लोग के स्वर कर्कश हो गये थे । साधारण बातचीत में भी लोग उत्तेजित हो जाते थे, जैसे साधारण संघर्ष से वन के वृक्ष जल उठते हैं । सुरेशसिंह कभी चार कदम टहलते थे, फिर हॉफकर बैठ जाते थे । नौकरों पर हुँझला रहे थे कि जल्द-जल्द छिडकाव क्यों नहीं करते। सहसा उन्हें अंदर से गाने की श्रावाज सुनाई दी। चौके, फिर क्रोध आया। मधुर गान कानों को अप्रिय जान पड़ा | यह क्या वेवक्त की शहनाई है ! यहाँ गरमी के मारे दम निकल रहा है और इन सबको गाने की सूझी है ! मगला ने बुलाया होगा, और क्या । लोग नाहक कहते हैं कि स्त्रियों के जीवन का आधार प्रेम है। उनके जीवन का आधार वही भोजन निद्रा, राग-रंग, आमोद-प्रमोद है, जो समस्त प्राणियों का है । घटे भर तो सुन चुका । यह गीत कभी बन्द भी होगा । ग नहीं । सब व्यर्थ में गला फाड़ फाड़कर निचला रही हैं । अन्न को न रहा गया । जनानखाने में आकर बोले-यह तुम लोगों ने क्या कॉप कॉव मचा रखी है ? यह गाने बनाने का कोन-सा समय है ? बाहर बैठना मुश्किल हो गया
पृष्ठ:मानसरोवर भाग 6.djvu/१३१
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