पृष्ठ:मानसरोवर भाग 6.djvu/१२८

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आभूषण मज़दूर-रये पैसे तो औरत ही के हाथ में थे। गहने बनवातो, तो उसका हाथ कौन पकड़ता दूसरे मजदूर ने कहा-गहनों से तो लदी हुई यो । जिघर से निकल जाती थी, छम-छम की आवाज से कान भर जाते थे। विमल -जब गहने बनवाने पर भी निठुराई की, तो यही कहना पड़ेगा कि यह जाति ही वेवफ़ा होती है। इतने में एक आदमी आकर विमलसिंह से बोला-चौधरी, अभी मुझे एक आदमी मिला था। वह तुम्हारा नाम, गाँव और बाप का नाम पूछ रहा था । कोई बाबू सुरेशसिंह हैं ? विमल ने सशक होकर कहा-हाँ, हैं तो। मेरे गाँव के इलाकेदार और बिरादरी के भाई हैं आदमी-उन्होंने थाने में कोई नोटिस छपवाया है कि जो विमलसिंह का पता लगावेगा उसे १०००) का इनाम मिलेगा। विमल-तो तुमने सिपाही को ठीक-ठीक बतला दिया ? श्रादमी-चौधरी, मैं कोई गँगर हूँ क्या ? समझ गया कुछ दाल में काला है। नहीं तो कोई इतने रुपये क्यों खरच करता । मैंने कह दिया कि उनका नाम विमलसिंह नहीं. जसोदा पाँडे है। बाप का नाम सुक्खू बताया और घर जिला झॉमी में । पूछने लगा, यहाँ कितने दिन ने रहता है ! मैंने कहा, कोई दस साल से । तब कुछ सोचकर चला गया | सुरेश बाबू मे तुमसे काई अदा- वत है क्या चौघरी? विमल-अदावत तो नहीं थी, मगर कौन जाने, उनकी नीयत बिगड़ गयी हो । मुझ पर कोई अपराध लगाकर मेरी जगह-जमीन पर हाथ बढ़ाना चाहते हो । तुमने बड़ा अच्छा किया कि सिगदी को उनघाँई बतायी। श्रादमी-~-मुझने कहता था कि ठीक-ठीक बता दो, तो ५०) तुम्हें भी दिला है। मैंने सोचा-आप तो हजार की गठरी मारेगा और मुझे ५०) दिलाने को रहता है। फटकार बता दी। एक मजदूर-मगर जो २००) देने को कहता, तो तुम सब ठीक-ठीक नाम- ठिकाना बता देते ? क्पो ! धत् तेरे लालची की!