मानसरोवर सती के वचन कभी झूठे हुए हैं ? एकाएक चिता में आग लग गयी। जयजयकार के शब्द गूंजने लगे । सती का मुख भाग मे यों चमकता था, जैसे सवेरे की ललाई में सूर्य चमकता है। थोड़ी देर में वहाँ राख के ढेर के सिवा और कुछ न रहा। इस सती के मन में कैसा सत था ! परसों जब उसने ब्रजविलासिनी को झिझककर धर्मसिंह के सामने जाते देखा था, उसी समय से उसके दिल में सदेह हो गया था। पर जब रात को उसने देखा कि मेरा पति इसी स्त्री के सामने दुखिया की तरह बैठा हुआ है, तब वह सन्देह निश्चय की सीमा तक पहुँच गया और यही निश्चय अपने साथ सत लेता आया था। सवेरे जब धर्मसिंह उठे तब राजनन्दिनी ने कहा था कि मैं व्रजविलासिनी के शत्रु का सिर चाहती हूँ, तुम्हें लाना होगा। और ऐसा ही हुआ। अपने सती होने के सब कारण राजनन्दिनी ने जान-बूझकर पैदा किये थे, क्योंकि उसके मन में सत था । पाप की आग कैसी तेज होती है ? एक पाप ने कितनी जाने ली १ राजवश के दो राजकुमार और नो कुमारियों देखते-देखते इस अभिकुण्ड में स्वाहा हो गयीं । सती का वचन सच हुश्रा । सात ही सप्ताह के भीतर पृथ्वीसिंह दिल्ली में कुत्त किये गये और दुर्गाकुमारी सती हो गयी।
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