हिंसा परमो धर्म 'था। की शुद्धि हुई है। सीधा-सादा जामिद इस सम्मान का ऐसे धर्मपरायण सहृदय प्राणियों के लिए वह क्या कुछ न करतार वह नित्य पूजा करता, भजन गाता। उसके लिए यह कोई नई बात न थी। अपने गाँव मे भी वह वरावर सत्यनारायण की कथा में बैठा करता था। भजन-कीर्तन किया करता था। अन्तर यही था कि देहात मे उसको कदर न थी। यहाँ सब उसके भक्त थे। एक दिन जामिद कई भक्तों के साथ बैठा हुआ कोई पुरांण पढ रहा था, तो क्या देखता है कि सामने सड़क पर एक बलिष्ठ युवक माथे पर तिलक लगाये, जनेऊ पहने, एक बूढ़े दुर्बल मनुष्य को मार रहा है। वुड्ढा रोता है, गिड़गिड़ाता है, और पैरों पढ़-पड़के कहता है कि महाराज, मेरा कुसूर माफ करो , किन्तु तिलकधारी युवक को उस पर जरा भी दया नहीं आती। जामिद का रक्त खौल उठा। ऐसे दृश्य देखकर वह शात न बैठ सकता था। तुरन्त कूदकर बाहर निकला, और युवक के सामने आकर वोला- इस वुड्ढे को क्यों मारते हो, भाई ? तुम्हें इस पर जरा भी दया नहीं आती ? युवक-मैं मारते-मारते इसकी हड्डियां तोड़ दूंगा। जामिद-आखिर इसने क्या कुसूर किया है ? कुछ मालूम तो हो । युवक-इसकी मुर्गी हमारे घर में घुस गई थी, और सारा घर गन्दा कर आई ? जामिद तो क्या इसने मुर्गी को सिखा दिया था कि तुम्हारा घर गन्दा कर आये ? वुड्ढा-खुदावन्द, मैं तो उसे वरावर खांचे में ढके रहता हूँ। आज गफलत हो गई । कहता हूँ, महाराज, कुसूर माफ करो, मगर नहीं मानते । हुजूर, मारते- मारते अवमरा कर दिया। युवक - अभी नहीं मारा है, अब मागा-खोदकर गाड़ दूंगा। जामिद - खोदकर गाड़ दोगे भाई साहब, तो तुम भी यों न खड़े रहोगे। समझ गये ? अगर फिर हाथ उठाया, तो अच्छा न होगा। जवान को अपनी ताकत का नशा था। उसने फिर वुड्ढे को चाँटा लगाया पर चांटा पड़ने के पहले ही जामिद ने उसकी गर्दन पकड़ ली। दोनों मे मल्लयुद्ध होने लगा। जामिद करारा जवान था। युवक को पटकनी दी, तो चारों खाने चित्त गिर गया। उसका गिरना था कि भक्तों का समुदाय, जो अब तक मन्दिर मे बैठा
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