६४ मानसरोवर वह लड़की थी! उसे देखकर आँखों में ज्योति आ जाती थी। विलकुल स्वर्ग की देवी जान पड़ती थी। जब कुबेरसिंह जीता था, तभी कुँअर राजनाथ यहाँ भागकर आये थे और उसके यहाँ रहे थे, उस लड़की की कुँअर से कहीं बातचीत हो गई। जब कुँअर को शत्रुओं ने पकड़ लिया, तो चन्दा घर में अकेली रह गई। गांव- वालों ने बहुत चाहा कि उसका विवाह हो जाय। उसके लिए वरों का तोड़ा न था भाई ! ऐसा कौन था, जो उसे पाकर अपने को धन्य न मानता, पर वह किसी से विवाह करने पर राज़ी न हुई। यह पेड़ जो तुम देख रहे हो, तब छोटा-सा, पौधा था। इसके आस-पास फूलों की कई और क्यारियों थीं। इन्हीं को गोड़ने, निराने, सींचने में उसका दिन कटता था, वस यही कहती थी कि हमारे कुँअर साहब आते होंगे। कुँअर की आँखों से आँसू की वर्षा होने लगी। मुसाफिर ने ज़रा दम लेकर कहा-दिन-दिन घुलती जाती थी। तुम्हें विश्वास न आयेगा भाई, उसने दस साल इसी तरह काट दिये। इतनी दुर्बल हो गई थी कि पहचानी न जाती थी; पर अव भी उसे कुँअर साहव के आने को आशा बनी हुई थी। आखिर एक दिन इसी वृक्ष के नीचे उसकी लाश मिली। ऐसा प्रेम कौन करेगा भाई ! कुँअर न-जाने मरे कि जिये, कभी उन्हें इस विरहिणी की याद भी आती है कि नहीं, पर इसने तो प्रेम को ऐसा निभाया जैसा चाहिए। कुँअर को ऐसा जान पड़ा, मानो हृदय फटा जा रहा है। वह कलेजा थामकर बैठ गये। मुसाफिर के हाथ में एक सुलगता हुआ उपला था। उसने चिलम भरी और दोचार दम लगाकर बोला-उसके मरने के बाद यह घर गिर गया। गाँव पहले ही उजाड़ था। अब तो और भी सुनसान हो गया। दो-चार असामी यहाँ आ बैठते थे। अब तो चिड़िए का पूत भी यहां नहीं आता। उसके मरने के कई महीने के बाद यही चिड़िया इस पेड़ पर बोलती हुई सुनाई दी। तबसे बराबर इसे यहाँ बोलते सुनता हूँ! रात को सभी चिड़ियां सो जाती हैं, पर यह रात-भर बोलती रहती है । उसका जोड़ा कभी नहीं दिखाई दिया। बस, फुल है। दिन-भर उसी झोपड़े में पड़ी रहती है। रात को इस पेड़ पर आ बैठती है। मगर इस समय इसके गाने में कुछ और ही बात है, नहीं तो सुनकर रोना आता है। ऐसा जान पड़ता
पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/७०
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।