मानसरोवर OS f F . सोना-भाग्य फूट गया। जोहत-जोहत आधीरातः बीते गई, तब ई बिपत फाट परी। चिन्ता०-सरकार, स्वान के मुख में अमृत. मोटे० -तो अब आज्ञा हो, तो चले।।। रानी--हाँ, और क्या । मुझे बड़ा दुःख है कि इस कुत्ते ने आजः इतना बड़ा अनर्थ कर डाला । तुम बड़े गुस्ताखा हो गये टामी । भंडारी, ये पित्तल उठाकर मेहतर को दे. दो। चिन्ता०—(सोना से ) छाती फटी जाती है।। . सोना को बालकों पर दया आई। बेचारे इतनी देर देवोपम धैर्य के साथ बैठे थे। बस चलता, तो कुत्ते का गला घोंट देती । बोली-लरकन का तो दोष नाहीं परत है। इन्हें काहे नाही खवाय देत कोऊ॥ । चिन्ता-मोटेराम महादुष्ट है। इसकी वुद्धि भ्रष्ट हो गई है। सोना-ऐसे तो बड़े विद्वान् बनत हैं। अब काहे नाही बोलत वनत । मुँह में दही जम गया, जीभै नहीं खुलत है। चिन्ता ० --सत्य कहता हूँ, रानी को चकमा देता। इस दुष्टके मारे सब खेल विगड़ गया। सारी अभिलाषा मन में रह गई । ऐसे पदार्थ अब कहाँ मिल सकते हैं. । सोना-सारी मनुसई निकस गई । घर ही में गरजे के सेर हैं । '.. '
- । रानी ने भडारी को बुलाकर कहा- इन छोटे-छोटे तीनों बच्चों को खिला दो।
ये वेचारे क्यों भूखों मरे । क्यों फेकूराम, मिठाई खाओगे | फेकू-इसीलिए तो आये हैं।। । रानी-'कितनी मिठाई खाओगे ? फेकू-बहुत-सी, ( हाथों से बताकर ) इतनी! 3 रानी-अच्छी बात है। जितनी- खाओगे, उतनी मिलेगी ; पर-जो बात मैं पू, वह बतानी पड़ेगी। बताओगे न ? 7 मेकू-हाँ बताऊँगा, 'पूछिए - 15 : रानी- झूठ बोले, तो एक मिठाई भी न मिलेगी। समझ गये ! ; फेकू-मत दीजियेगा । मैं झूठ बोलूंगा ही नहीं - - रानी--अपने पिता का नाम बताओ। in .... t ।