पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/३००

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मानसरोवर मदारीलाल ने पूछा- घर पर कितनी जायदाद है ? रामेश्वरी-जायदाद क्या है, एक कच्चा मकान है और दस-बारह बीघे की काश्तकारी है। पक्का मकान बनवाना शुरू किया था ; मगर रुपये पूरे न पड़े। अभी अधूरा पड़ा हुआ है। दस बारह हजार खर्च हो गये और अभी छत पड़ने की नौबत नहीं आई। मदारी-कुछ रुपये बैंक में जमा हैं या वस खेती ही का सहारा है ? विधवा -जमा.तो एक पाई भी नहीं है भैयाजी! उनके हाथ में रुपये रहने ही न पाते थे। बस, वही खेती का सहारा है। मदारी-तो उन खेतों में इतनी पैदावार हो जायगी कि लगान भी अदा हो जाय और तुम लोगों को गुजर-बसर भी हो ? रामेश्वरी-और कर ही क्या सकते हैं भैयाजी, किसी-न-किसी तरह ज़िन्दगी तो काटनी ही है। बच्चे न होते तो मैं ज़हर खा लेती ।। मदारी-और अभी बेटी का विवाह भी करना है ? 'विधवा-- उसके विवाह की अब कोई चिन्ता नहीं। किसानों में ऐसे बहुत-से मिल जायेंगे जो बिना कुछ लिये दिये विवाह कर लें। मदारीलाल ने एक क्षण सोचकर कहा--अगर मैं कुछ सलाह दूं, तो उसे मानगी आप? रामेश्वरी - भैयाजी, आपकी सलाह न मानूंगी तो किसकी सलाह मानूंगी । और दूसरा है ही कौन ? मदारी-तो आप अपने घर जाने के बदले मेरे घर चलिए । जैसे मेरे बाल- बच्चे रहेंगे वैसे आपके भी रहेंगे। आपको कोई कष्ट न होगा। ईश्वर ने चाहा तो कन्या का विवाह भी किसी अच्छे कुल मे हो जायगा। विधवा की आँखें सजल हो गई । बोली- मगर भैयाजी, सोचिए.. मदारीलाल ने घात काटकर कहा- -मैं कुछ न सोचूंगा और न कोई उज्र सुनूँगा । क्या दो भाइयों के परिवार एक साथ नहीं रहते ? सुबोध को मैं अपना भाई समझता था और हमेशा समझंगा। विधवा का कोई उन न सुना गया। उसी दिन मदारीलाल सबको अपने साथ ले 1 /