प्रायश्चित्त 'नहीं हजूर, कहा न कि अभी लहास को डाक्टरी होगो । मुदा अब जल्दो चलिए । ऐसा न हो, कोई दूसरा आदमी बुलाने आता हो।' 'हमारे दफ्तर के सब लोग आ गये होंगे ?' 'जी हाँ, इस मुहल्लेवाले तो सभी थे।' 'पुलिस ने मेरे बारे में तो उनसे कुछ पूछ-ताछ नहीं को ?' 'जो नहीं, किसीसे भी नहीं।' मदारीलाल जब सुबोधचन्द्र के घर पहुंचे, तब उन्हें ऐसा मालूम हुआ कि सब लोग उनकी तरफ सन्देह को आँखों से देख रहे हैं। पुलिस इन्स्पेक्टर ने तुरन्त उन्हें बुलाकर कहा-आप भी अपना बयान लिखा दें। और सबके वयान तो लिख चुका हूँ। मदारीलाल ने ऐसी सावधानी से अपना बयान लिखाया कि पुलिस के अफसर भी दग रह गये। उन्हें मदारीलाल पर कुछ शुबहा होता था, पर इस बयान ने उसका भकुर भी निकाल डाला। इसी वक्त सुवोध के दोनों बालक रोते हुए मदारीलाल के पास आये और कहा- चलिए, आपको अम्मा बुलाती हैं। दोनों मदारीलाल से परिचित थे। मदारीलाल यहां तो रोज़ ही आते थे, पर घर में कभी न गये थे। सुबोध की स्त्री उनसे परदा करती थी। यह बुलावा सुनकर उनका दिल धड़क उठा-कहीं इसका मुझपर शुबहा न हो। कहीं सुवोध ने मेरे विषय में कोई सन्देह न प्रकट किया हो। कुछ झिझकते, कुछ डरते, भोतर गये तब विधवा का करुण-विलाप सुनकर कलेजा कोप उठा। इन्हें देखते ही उस अवला के आँसुओं का कोई दूसरा सोता खुल गया और लड़की तो दौड़कर इनके पैरों से लिपट गई । दोनों लड़कों ने भी घेर लिया। मदारीलाल को उन तीनों की आँखों मे ऐसो अथाह वेदना, ऐसो विदारक याचना भरी हुई मालूम हुई कि वे उनको ओर देख न सके । उनको आत्मा उन्हें धिक्कारने लगी। जिन बेचारों को उन पर इतना विश्वास, इतना भरोसा, इतनी आत्मीयता, इतना स्नेह था, उन्हींकी गर्दन पर उन्होंने छुरी फेरी, उन्हीं के हाथों यह भरा-पूरा परिवार धूल में मिल गया ! इन असहायर्या का अब क्या हाल होगा ! लडकी का विवाह करना है। कौन करेगा, वच्चों के लालन पालन का भार कौन उठायेगा ! मदारीलाल को इतनी आत्म- ग्लानि हुई कि उनके मुंह से तसल्लो का एक शब्द भी न निकला। उन्हें ऐसा जान 1
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