२७५ नसें तन गई । साँप ने अब तक उसके हाथों ऐसा व्यवहार न देखा था। उसकी समझ में न आता था कि यह मुझसे क्या चाहते हैं। उसे शायद. भ्रम हुआ कि यह मुझे मार डालना चाहते हैं , अतएव वह आत्मरक्षा के लिए तैयार हो गया। कैलास ने उसकी गरदन खूब दवाकर मुँह खोल दिया और उसके ज़हरीले दांत टिग्वाते हुए बोला-जिन सजना को शक हो, आकर देख ले । आया विश्वास, या अब भी कुछ शक है ? मित्रो ने आकर उसके दांत देखे और चक्ति हो गये। प्रत्यक्ष प्रमाण के सामने सन्देह को रयान कहाँ। मित्रों का शका-निवारण करके कैलास ने साँप को गरदन ढोली कर दी और उसे ज़मीन पर रखना चाहा , पर वह काला गेहुवन क्रोध से, पागल हो रहा था। गरदन नरम पड़ते ही उसने सिर उठाचर कैलास को उंगली में ज़ोर से काटा और वहां से भागा । कैलास की उँगली से टप-टप खून टपकने लगा। उसने जोर से उँगली दबा ली और अपने कमरे की तरफ दौड़ा । वहा मेज की दराज मे एक जड़ी नसो हुई थी, जिसे पीसकर लगा देने से घातक विष भी रफू हो जाता था। मित्रों में हलचल पड़ गई। बाहर महफिल में भी खबर हुई । डाक्टर साहव घबढ़ाकर दौड़े। फौरन उँगली की जड़ कसकर बाँधी गई और जड़ी पोसने के लिए दी गई। डाक्टर साहब जड़ी के कायल न थे। वह उँगली का डसा भाग नस्तर से काट देना चाहते थे, मगर कैलास को जड़ी पर पूर्ण विश्वास था। मृणा- लिनी प्यानो पर बैठी हुई थी। यह खबर सुनते ही दौड़ी, और कैलास की उँगली से टपकते हुए खून को रूमाल से पोंछने लगी। जड़ी पीसी जाने लगी, पर उसी एक मिनट मे कैलास की आँखें मपकने लगी, ओठों पर पीलापन दौड़ने लगा। यहाँ तक कि वह खड़ा न रह सका । फर्श पर बैठ गया। सारे मेहमान कमरे में जमा हो गये। कोई कुछ कहता था, कोई कुछ। इतने में जड़ी पिसकर आ गई। मृणालिनी ने उँगली पर लेप किया। एक मिनट और वीता । कैलास की आँखें वन्द हो गई । वह लेट गया और हाय से पखा झलने का इशारा किया। मॉ ने दौड़कर उसका सिर गोद में रख लिया ओर बिजली का टेवुल-फैन लगा दिया गया। डाक्टर साहब ने झुककर पूछा-कैलास, कैसी तबीयत है ? केलास ने धीरे से हाथ उठा दिया। पर कुछ बोल न सका। मृणालिनी ने करुण-स्वर में कहा -क्या जड़ी कुछ असर न करेगी ? डाक्टर साहब ने सिर पकड़कर कहा-क्या बतलाऊँ, मैं इसको वातों में आ गया। अब तो नश्तर से भी कुछ फायदा न होगा। .
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