२७४ मानसरोवर जाकर महुअर वजाना शुरू किया। फिर एक-एक खाना खोलकर एक-एक साँप को निकालने लगा। वाह ! क्या कमाल था! ऐसा जान पड़ता था कि ये कीड़े उसकी एक-एक बात, उसके मन का एक-एक भाव समझते हैं। किसीका उठा लिया, किसी- को गरदन में डाल लिया, किसीको हाथ में लपेट लिया। मृणालिनी वार-बार मना करती कि इन्हें गरदन में न डालो, दूर ही से दिखा दो। बस, जरा नचा दो। कैलास की गरदन में साँपों को लिपटते देखकर उसकी जान निकली जाती थी। पछता रही थी कि मैने व्यर्थ ही इनसे साँप दिखाने को कहा , मगर कैलास एक न सुनता था। प्रेमिका के सम्मुख अपनं सर्प-कला-प्रदर्शन का ऐसा अवसर पाकर वह कव चूकता ! एक मित्र ने टीका को-~~-दांत तोड़ डाले होंगे ? कैलाश हंसकर बोला-दांत तोड़ डालना मदारियों का काम है। किसीके दाँत नहीं तोड़े गये। कहिए तो दिखा दूँ! यह कहकर उसने एक काले साँप को पकड़ लिया और बोला- मेरे पास इससे बड़ा और जहरीला साँप दूसरा नहीं है। अगर किसीको काट ले, तो आदमी आनन-फानन मे मर जाय । लहर भी न आये। इसके काटे का मन नहीं । इसके दांत दिखा दूँ ? मृणालिनी ने उसका हाथ पकड़कर कहा-नहीं, नहीं, कैलास, ईश्वर के लिए इसे छोड़ दो। तुम्हारे पैरों पड़ती हूँ। इस पर एक दूसरे मित्र बोले-~-मुझे तो विश्वास नहीं आता, लेकिन तुम कहते हो तो मान लूंगा। कैलाश ने साँप की गरदन पकड़कर कहा- नहीं साहब, आप आँखो से देखकर मानिए । दाँत तोड़कर वश मे किया, तो क्या किया । साँप वड़ा समझदार होता है। अगर उसे विश्वास हो जाय कि इस आदमो से मुझे कोई हानि न पहुँचेगी, तो वह उसे गिज़ न काटेगा। मृणालिनी ने जब देखा कि कैलास पर इस वक्त भूत सवार है ; तो उसने यह तमाशा बन्द करने के विचार से कहा-अच्छा भई, अव यहाँ से चलो, देखो, गाना शुरू हो गया । आज मैं भी कोई चीज सुनाऊँगी। यह कहते हुए उसने कैलास का कधा पकड़कर चलने का इशारा किया और कमरे से निकल गई , मगर कैलास विरोधियों का शका-समाधान करके ही दम लेना चाहता था। उसने साँप की गरदन पकड़कर जोर से दबाई, इतनी ज़ोर से दवाई कि उसका मुंह लाल हो गया, देह को सारी
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