पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/२७

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निमन्त्रण एकाएक मोटर की आवाज़ आई । उसके प्रकाश से पण्डितजीका सारा घा जगमगा उठा । वे खिड़की से झाँकने लगे, तो मोटेराम को मोटर से उतरते देखा। एक लम्बी साँस लेकर चारपाई पर गिर पड़े। मन में कहा कि दुष्ट भोजन करके अब यहाँ मुझसे बखान करने आया है ? अमिरतीदेवी ने पूछा- कौन है डाढीजार, इतनी रात को जगावत है ! मोटे -हम हैं हम ! गाली न टो। अमिरती-अरे दुर मुंहझाँसे, तै कौन है । कहते हैं हम हैं हम ! को जाने O तै कौन हस ? मोटे० --अरे हमारी वोलो नहीं पहचानती हो। खूब पहचान लो। हम हें, तुम्हारे देवर। अमिरती - ऐ दुर, तोरे मुँह मे का लागे। तोर लहास उठे। हमार देवर बनत है, डाढीजार। co मोटे०-अरे, हम हैं मोटेराम शास्त्रो । क्या इतना भी नहीं पहचानती! चिन्ता- मणिजी घर में हैं ? अमिरती ने किवाड़ खोल दिया और तिरस्कार-भाव से बोली-अरे तुम ये ! तो नाम क्यो नहीं बताते थे ? जब इतनी गालियां खा ली, तो वोल निकला। क्या है, क्या ? मोटे० - कुछ नहीं, चिन्तामणिजी को शुभ-सवाद देने आया हूँ। रानी साहब ने उन्हें याद किया है। अमिरती-भोजन के बाद बुलाकर क्या करेंगी ? मोटे -अभी भोजन कहाँ हुआ है । मैंने जब इनकी विद्या, कर्मनिष्ठा, सद्विचार की प्रशसा की, तब मुग्ध हो गई । मुझसे कहा कि उन्हें मोटर पर लाओ। क्या सो गये? चिन्तामणि चारपाई पर पड़े-पडे सुन रहे थे। जी में आता था, चलकर मोटेराम के चरणों पर गिर पड़ें। उनके विषय मे अब तक जितने कुत्सित विचार उठे थे, सव लुप्त हो गये । ग्लानि का आविर्भाव हुआ। रोने लगे । 'अरे भाई, आते हो या सोते हो रहोगे।' यह कहते हुए मोटेराम उनके सामने जाकर खड़े हो गये ।