ममता (१) बाबू रामरक्षादास दिल्ली के एक ऐश्वर्यशाली खत्री थे, बहुत हो ठाट-बाट से रहने- वाले। बड़े बड़े अमीर उनके यहां नित्य आते जाते थे। चे आये हुओं का आदर- सत्कार ऐसे अच्छे ढग से करते थे कि इस बात को धूम सारे महत्ले में थी। नित्य उनके दरवाजे पर किसी-न-किसी बहाने से इष्ट-मित्र एकत्र हो जाते, टेनिस खेलते, ताश उडता, हारमोनियम के मधुर स्वरों से जी बहलाते, चाय-पानी से हृदय प्रफुल्लित करते, अधिक और क्या चाहिए ? जाति की ऐसी अमूल्य सेवा कोई छोटो वात नहीं है। नीची जातियों के सुधार के लिए दिल्ली में एक सोसायटी थी। बाबू साहब उसके सेक्रेटरी थे, और इस कार्य को असाधारण उत्साह से पूर्ण करते थे। जव उनका बूढा कहार बीमार हुआ और किश्चियन-मिशन के डाक्टरों ने उसकी शुश्रूषा की, जब उसकी विधवा स्त्री ने निर्वाह की कोई आशा न देखकर क्रिश्चियन-समाज का आश्रय लिया, तब इन दोनों अवसरों पर बाबू साहब ने शोक के रेज्यूलेशन पास किये। ससार जानता है कि सेक्रेटरी का काम सभाएँ करना और रेज्यूलेशन बनाना है। इससे अधिक वह कुछ नहीं कर सकता। मिस्टर रामरक्षा का जातीय उत्साह यहीं तक सीमाबद्ध न था। वे सामाजिक कुप्रथाओं तथा अन्ध-विश्वास के प्रवल शत्रु थे। होली के दिनों में जव कि मुहल्ले में चमार और कहार शराव से मतवाले होकर फाग गाते और डफ बजाते हुए निकलते, तो उन्हें बड़ा शौक होता। जाति को इस मूर्खता पर उनकी आँखों में आंसू भर आते और वे प्रायः इस कुरीति का निवारण अपने हण्टर से किया करते। उनके हण्टर में जाति-हितैषिता की उमग उनकी वक्तृता से भी अधिक थी। यह उन्हीके प्रशसनीय प्रयत्ल थे, जिन्होंने मुख्य होली के दिन दिल्ली में हलचल मवा दी, फाग गाने के अपराध मे हज़ारो आदमी पुलिस के पजे में आ गये । सैकड़ों घरों में मुख्य
पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/२६०
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।