पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/२०८

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२०४ मानसरोवर पर

सुभद्रा ने हँसकर कहां - मैं ऐसे अवसर पर आपके जोड़े तैयार करके अपने को धन्य सममँगी । वह शुभ तिथि कत्र है ? युवतो ने सकुचाते हुए कहा वह तो कहते हैं, इसी सप्ताह में हो जाय , मैं उन्हें टालती आतो हूँ। मैंने तो चाहा था कि भारत लौटने पर विवाह होता, पर वह इतने उतावले हो रहे हैं कि कुछ कहते नहीं बनता। अभी तो मैंने यही कहकर टाला कि मेरे कपड़े सिल रहे हैं। सुभद्रा-तो मैं आपके जोड़े बहुत जल्द दे दूंगी। युवती ने हँसकर कहा - मैं तो चाहती थी कि आप महीनों लगा देती। सुभद्रा-वाह, मैं इस शुभ कार्य में क्यों विघ्न डालने लगी। मैं इसी सप्ताह में आपके कपड़े दे दूंगी, और उनसे इसका पुरस्कार लूंगी। युवती खिलखिलाकर हँसी। कमरे में प्रकाश की लहरें-सी उठ गई । बोली- इसके लिए तो पुरस्कार वह देंगे। बड़ी खुशी से देंगे और तुम्हारे कृतज्ञ होंगे। मैंने तो प्रतिज्ञा की थी कि विवाह के बन्धन में पढूंगी ही नहीं ; पर उन्होंने मेरी प्रतिज्ञा तोड़ दी। अब मुझे मालूम हो रहा है कि प्रेम की वेड़ियाँ कितनी आनन्दमयी होती हैं 1 तुम तो अभी हाल ही में आई हो। तुम्हारे पति भी साथ होंगे ? सुभद्रा ने वहाना किया। बोली-वह इस ममय जर्मनी में हैं। सगीत से उन्हें बहुत प्रेम है। सगीत ही का अध्ययन करने के लिए वहां गये हैं। तुम भी सगीत जानती हो ? "बहुत थोड़ा।" "केशव को सगीत से बड़ा प्रेम है।" केशव का नाम सुनकर सुभद्रा को ऐसा मालूम हुआ, जैसे विच्छू ने काट लिया हो। वह चौंक पड़ी। युवती ने पूछा-आप चौंक कैसे गई 2 क्या केशव को जानती हो ? सुमद्रा ने बात बनाकर कहा-नहीं, मैंने यह नाम कभी नहीं सुना। वह यहाँ क्या करते हैं ? सुभद्रा को खयाल आया, क्या केशव किसी दूसरे आदमी का नाम नहीं हो सकता। इसलिए उसने यह प्रश्न किया था। उसी जवाव पर उसकी ज़िन्दगी का फैसला था।