71 मानसरोवर बरामदे में चली आई । प्रबल इच्छा हुई कि जाकर उनके गले से लिपट जाय । उसने अगर अपराव भी किया है, तो उन्हीं के कारण तो ? यदि वह वरावर पत्र लिखते जाते, तो वह क्यों आती ? लेकिन शव के साथ यह युवती कौन है ? अरे ! केशव उसका हाथ पकड़े हुए हैं। दोनों मुसकरा-मुसकराकर बातें करते चले जाते हैं । यह युवती कौन है ? सुभद्रा ने ध्यान से देखा । युवती का रग साँवला था, वह भारतीय वालिका थी। उसका पहनावा भारतीय था। इससे ज्यादा सुभद्रा को ओर कुछ न दिखाई दिया । उसने तुरत जूते पहने, द्वार बद किया और एक क्षण मे, गली में आ पहुंची। केशव अब दिखाई न देता था, पर वह जिधर गया था, उधर ही वह बड़ी तेजी से लपकी चली जाती थी। यह युवती कौन है ? वह उन दोनों की बातें सुनना चाहती यो, उस युवती को देखना चाहती थी। उसके पाँव इतनी तेज़ी से उठ रहे थे, मानो दौड़ रही हो। पर इतनी जल्द दोनों कहाँ अदृश्य हो गये ? अव तक उसे उन लोगों के समोप पहुँच जाना चाहिए था। शायद दोनों किसी 'बस' पर जा बैठे ! अब वह गली समाप्त करके एक चौड़ो सड़क पर आ पहुंची थी। दोनों तरफ बड़ी-बड़ी जगमगाती हुई दूकानें थीं, जिनमे ससार को विभूतियाँ गर्व से फूली वैठी थीं। कदम-कदम पर होटल और रेस्ट्रा थे। सुभद्रा दोनों ओर सचेष्ट नेत्रों से ताकती, पग-पग पर भ्राति के कारण मचलती कितनी दूर निकल गई, कुछ खबर नहीं। फिर उसने सोचा-यों कहाँ तक चलो जाऊँगी, कौन जाने, किधर गये । चल-- कर फिर अपने बरामदे से देखू । आखिर इधर से गये हैं, तो इधर ही से लौटेंगे भी। यह खयाल आते ही वह धूम पड़ी, और उसी तरह दौड़ती हुई अपने स्थान को ओर चली । जब वहाँ पहुँची, तो वारह बज गये थे। और इतनी देर उसे चलते ही गुजरा ! एक क्षण भी उसने कहीं विश्राम नहीं किया। वह ऊपर पहुंची तो गृह-स्वामिनी ने कहा--तुम्हारे लिए बड़ी देर से भोजन . रखा हुआ सुभद्रा ने भोजन अपने कमरे में मँगा लिया, पर खाने की सुधि किसे थी ! वह उसी बरामदे मे, उसी तरफ, टकटकी लगाये खड़ी थो, जिधर से केशव गया था। एक वज गया, दो बजा, फिर भी केशव नहीं लौटा। उसने मन में कहा- -वह
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