सोहाग का शव १९७ पर्यन्त कोई बाधा न खड़ी होगी । एक बार जो निश्चय कर लिया है, उसे पूरा ही कर डालो, अनत सुख को आशा में मैं सारे कष्ट झेल लूंगी। यह कहते हुए युवती जल पान लाने के बहाने से फिर भीतर चली गई। आंसुओं का आवेग उसके कावू से बाहर हो गया। इन दोनों प्राणियों के वैवाहिक जीवन की यह पहली ही वर्षगांठ थी। युवक बबई-विश्वविद्यालय से एम० ए० की उपाधि लेकर नागपुर के एक कालेज में अध्यापक था। नवीन युग की नयी-नयी वैवाहिक और सामा- जिक क्रातियों ने उसे लेशमात्र मों विचलित न किया था। पुरानी प्रधाओं से ऐसी प्रगाढ ममता कदाचित् वृद्धजनों को भी कम होगी। प्रोफेसर हो जाने के बाद उसके माता-पिता ने इस बालिका से उसका विवाह कर दिया था। प्रथानुसार ही उस आँख- मिचौनी के खेल में उन्हें प्रेम का रत्न मिल गया । केशव छुट्टियों में यहां पहली गाड़ी से आता और आखिरो गाड़ी से जाता। ये दो-चार दिन मीठे स्वप्न के समान कट जाते थे। दोनों बालकों की भांति रो-रोकर विदा होते। इसौ कोठे पर खड़ी होकर वह उसको देखा करतो, जब तक निर्दयी पहादियां उसे आड़ में न कर लेती । पर अभी माल भी न गुज़रने पाया था कि वियोग ने अपना पड्यत्र रचना शुरू कर दिया । केशव को विदेश जाकर शिक्षा पूरी करने के लिए एक वृत्ति मिल गई। मित्रों ने चवाइयां दों। किसके ऐसे भाग्य हैं, जिसे विना मांगे स्वभाग्य-निर्माण का ऐसा अवसर प्राप्त हो। केशव बहुत प्रसन्न न था। वह इसी दुविधे में पड़ा हुआ घर आया। माता-पिता और अन्य सम्बधियों ने इस यात्रा का घोर विरोध किया। नगर में जितनी बधाइयां मिली थीं, यहाँ उससे कहीं अधिक बाधाएं मिली। किंतु सुभद्रा को उधाकांक्षाओं को सीमा न थी। वह कदाचित् केशव को इद्रासन पर बैठा हुआ देखना चाहती थी। उसके सामने तब भी वही पति-सेवा का आदर्श होता था। वह तब भी उसके सिर में तेल डालेगी, उसको धोतो छोटेगी, उसके पवि दवायेगी और उनके पसा मलेगो । उपासक की महत्त्वाकाक्षा उपास्य ही के प्रति होती है। वह उसको सोने का मदिर बनवायेगा, उसके सिंहासन को रत्नों से सजायेगा, स्वर्ग से पुष्प कर उसकी भेंट करेगा; पर वह स्वय वही उपासक रहेगा। जटा के पर मुकुट या कोपीन की जगह पीतावर की लालसा उसे कभी नहीं सताती। सुभद्रा ने उगवस तक दम न लिया, जन तक पेशव ने विलायत जाने का वादा न कर लिया, माता-पिता ने उसे क्लकिनो, और न जाने क्या-क्या कहा, पर अत में सहमत 1 स्थान
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