१९० सानसरोवर चौधरी -अच्छा, फिर तो अदर जाओ, मैं देख रहा हूँ। स्त्री ने कान पर हाथ रखकर कहा-ना बाबा, अव में उस। कमरे में कदम न रखूगी। चौधरी-अच्छा, मैं जाकर देखता हूँ। चौधरी ने कोठरी में जाकर दोनों थैलियाँ ताक पर से उठा ली। किसी प्रकार की शका न हुई। गोमती की छाया का कहीं नाम भी न था। स्त्री द्वार पर खड़ी झांक रही थी। चौधरी ने आकर गर्व से कहा-मुझे तो कहीं कुछ दिखाई न दिया। वहाँ होती, तो कहाँ चली जाती। स्त्री -क्या जाने तुम्हे क्यो नहीं दिखाई दी, तुमसे उसे स्नेह था, इसी से हट गई होगी। चौधरी--तुम्हें भ्रम था, और कुछ नहीं। स्त्री-बच्चा को बुलाकर पुछाये देती हूँ। चौधरी- -~-खड़ा तो हूँ, आकर देख क्यो नहीं लेती ? स्त्री को कुछ आश्वासन हुआ। उसने ताक के पास जाकर डरते-डरते हाथ बढ़ाया-ज़ोर से चिल्लाकर भागी और आंगन मे आकर दम लिया । चौधरी भी उसके साथ आंगन में आ गया और विस्मय से बोला-क्या था क्या ? व्यर्थ में भागी चली आई । मुझे तो कुछ न दिखाई दिया। स्त्री ने हांफते हुए तिरस्कारपूर्ण स्वर मे कहा - चलो हटो, अब तक तो तुमने मेरी जान ही ले ली थी। न-जाने तुम्हारी आँखों को क्या हो गया है। खड़ी तो है । वह डाइन 1 इतने में हरनाथ भी वहाँ आ गया । माता को आँगन में पड़े देखकर बोला- क्या है अम्माँ, कैसा जी है ? स्त्री-वह चुडैल आज दो बार दिखाई दी बेटा ! मैंने कहा, लाओ. तुम्हें रुपये दे दूं। फिर जब हाथ मे आ जायेंगे, तो कुओं बनवा दिया जायगा। लेकिन ज्यों ही थैलियों पर हाथ रखा, उस चुडैल ने मेरा हाथ पकड़ लिया। प्राण-से निकल गये। हरनाथ ने कहा-किसी अच्छे ओझा को बुलाना चाहिए, जो इसे मार भगाये । चौधरी-क्या रात तुम्हें भी दिखाई दी थी ? .
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