सुजान भगत १८१ . अन्य कृषकों की भांति भोला अभी कमर सीधी कर रहा था कि सुजान ने फिर हल उठाया और खेत की ओर चले। दोनों बैल उमग से भरे दौड़े चले जाते थे, मानो उन्हें स्वय खेत में पहुँचने की जल्दी थी। भोला ने मडैया में लेटे-लेटे पिता को हल लिये जाते देखा, पर उठ न सका। उसको हिम्मत छूट गई। उसने कभी इतना परिश्रम न किया था। उसे वनी-बनाई गिरस्ती मिल गई थी। उसे ज्यों-त्यों चला रहा था। इन दामों वह घर का स्वामी बनने का इच्छुक न था। जवान आदमी को बीस धंधे होते हैं। हॅसने बोलने के लिए, गाने-बजाने के लिए उसे कुछ समय चाहिए। पड़ोस के गांव में दगल हो रही है। जवान आदमी कैसे अपने को वहाँ जाने से रोकेगा ? किसी गाँव में वरात भाई है, नाच-गाना हो रहा है। जवान आदमो क्यों उसके आनद से वचित रह सकता है ? वृद्धजलो के लिए ये वाधाएँ नहीं। उन्हें न नाच-गाने से मतलब, न खेल-तमाशे से गरज, केवल अपने काम से काम है। बुलाकी ने कहा-भोला, तुम्हारे दादा हल लेकर गये। भोला--जाने दो अम्मा, सुझसे तो यह नहीं हो सकता। ( ५ ) सुजान भगत के इस नवीन उत्साह पर गाँव मे टीकाएँ हुई, निकल गई सारी भगतो। बना हुआ था। माया मे फँसा हुआ है। आदमी काहे को, भूत है। मगर भगतजी के द्वार पर अब फिर साधु-सत आसन जमाये देखे जाते हैं। उनका आदर-सम्मान होता है । अवको उसकी खेती ने सोना उगल दिया है। वखारी में अनाज रखने को जगह नहीं मिलती। जिस खेत में पाँच मन मुश्किल से होता था, उसी खेत में अबकी दस मन की उपज हुई है। चैत का महीना था । खलिहानों में सतयुग का राज था। जगह-जगह अनाज के ढेर लगे हुए थे। यही समय है जब कृषको को भी थोड़ी देर के लिए अपना जीवन सफल मालूम होता है, जब गर्व से उनका हृदय उछलने लगता है। सुजान भगत टोकरों में अनाज भर-भर देते थे और दोनों लड़के टोकरे लेकर घर मे अनाज रस आते थे। कितने ही भाट और भिक्षुक भगतजी को घेरे हुए थे। उनमें वह भिक्षुक भी था, जो आज से आठ महीने पहले भगत के द्वार से निराश होकर लौट गया था । , - 1
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