अग्नि-समाधि १६५ पयाग ने कहा-तो तू हो बाज़ार जाया कर। घर का काम रहने दे। रुक्मिन कर लेगी। रुक्मिन ने आपत्ति को -ऐसी बात मुँह से निकालते लाज नहीं आती ? तीन दिन की बहुरिया बाज़ार में घूमेगी तो ससार क्या कहेगा 2 सिलिया ने आग्रह करके कहा- ससार क्या कहेगा, क्या कोई ऐव करने जाती हूँ? सिलिया को डिग्री हो गई। आधिपत्य रुक्मिन के हाथ से निकल गया। सिलिया को अमलदारी हो गई। जवान औरत थी । गेहूँ पीसकर उठी तो औरों के साथ घास छीलने चली गई और इतनी घास छीली कि सब दग रह गई ! गट्ठा उठाये न उठता था। जिन पुरुषों को घास छोलने का बड़ा अभ्यास था, उनसे भी उसने बाजी मार ली ! यह गट्ठा वारह आने को बिका । सिलिया ने आटा, चावल, दाल, तेल, नमक, तरकारी, मसाला सब कुछ लिया, और चार आने बचा लिये। रुक्मिन ने समझ रखा था कि सिलिया बाजार से दो-चार आने पैसे लेकर लौटेगी तो उसे डॉगी और दूसरे दिन से फिर बाजार जाने लगेंगी। फिर मेरा राज्य हो जायगा । पर यह सामान ठेखे, तो आँखें खुल गई । पयाग खाने बैठा तो मसालेदार तरकारी का वखान करने लगा। महीनों से, ऐसो स्वादिष्ट वस्तु मयस्सर न हुई थी । बहुत प्रसन्न हुआ। भोजन करके, वह बाहर जाने लगा, तो सिलिया बरोठे में खड़ी मिल गई । बोला-आज कितने पैसे मिले, "धारह आने मिले थे।" “सव खर्च कर डाले 2 कुछ बचे हों तो मुझे दे दे।" सिलिया ने बचे हुए चार आने पैसे दे दिवे । पयाग पैसे खनखनाता हुआ चोला- तूने तो आज मालामाल कर दिया । रुक्मिन तो दो-चार पैसों ही मे टाल देती थी.! "मुझे गाइकर रखना थोड़ा ही है। पैसा खाने-पीने के लिए है कि गाइने के लिए " “अव तू ही बाजार जाया कर, रुक्मिन घर का काम करेगी।" ( ३ ) रुक्मिन और सिलिया में संग्राम छिड़ गया। सिलिया पयाग पर अपना आधि- पत्य जमाये रखने के लिए जान तोड़कर परिश्रम करती। पहर रात ही ते उसकी
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