१२ मानसरोवर मोटे -तो क्या तुम्हारे विछुए पहनने ही से मैं जी रहा हूँ ? जीता पौष्टिक पदार्थों के सेवन से । तुम्हारे विछुओं के पुण्य से नहीं जीता। सोना-नहीं भाई, मैं विछुए न उतारूँगी। मोटेराम ने सोचकर कहा-अच्छा, पहने चलो। कोई हानि नहीं। गोवर्द्धन धारी यह वाधा भी हर लेंगे । बस, पाँव में बहुत-से कपड़े लपेट लेना । मैं कह दूंग इन पण्डितजी को पीलपाँव हो गया है। क्यो कैसी सूझी ? पण्डिताइन ने पतिदेव को प्रशसा-सूचक नेत्रों से देखकर कहा- -जन्म-भर पद नही है। (२) सन्ध्या-समय पण्डितजी ने पांचो पुत्रों को बुलाया और उपदेश देने लगे- पुत्रो, कोई काम करने के पहले खूब सोच-समझ लेना चाहिए कि कैसे क्या होगा मान लो, रानी साहब ने तुम लोगों का पता-ठिकाना पूछना आरम्भ किया, तो तु लोग क्या उत्तर दोगे ? यह तो महान् मूर्खता होगी कि तुम सब मेरा नाम लो सोचो, कितने कलक और लज्जा की बात होगी कि मुझ जैसा विद्वान् केवल भोज के लिए इतना बढ़ा कुचक्र रचे। इसलिए, तुम सब थोड़ी देर के लिए भूल जाओ कि मेरे पुत्र हो । कोई मेरा नाम न बतलाये। ससार में नामों की कमी नहीं, को अच्छा-सा नाम चुनकर बता देना। पिता का नाम बदल देने से कोई गाली नह लगती । यह कोई अपराध नहीं । अलगू-आप ही न बता दीजिए। मोटे-अच्छी बात है, बहुत अच्छी बात है। हाँ, इतने महत्त्व का कार मुझे स्वय करना चाहिए। अच्छा सुनो-अलगूराम के पिता का नाम है पण्डित केशव पांडे, खूब याद कर लो। बेनीराम के पिता का नाम है पण्डित मॅगरू ओम खूब याद रखना । छेदीराम के पिता हैं, पण्डित दमड़ी तिवारी, भूलना नहीं भवानी, तुम गगू पाँड़े वतलाना, खूब याद कर लो। अब रहे फेकूराम, तुम बेट बतलाना सेतूराम पाठक । हो गये सव । हो गया सबका नाम-करण ! अच्छा, अ मैं परीक्षा लूँगा। होशियार रहना । वोलो अलगू, तुम्हारे पिता का क्या नाम है ? अलगू-पण्डित केशव पौड़े 2 'बेनीराम, तुम बताओ।'
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