निमन्त्रण राम शास्त्री, बेनीराम शास्त्री, छेदीराम शास्त्री, भवानीराम शास्त्रो, फेकूराम शास्त्री, मोटेराम शास्त्री आदि जब इतने आदमी अपने घर ही में हैं, तब बाहर कौन ब्राह्मणों को खोजने जाय । सोना-और सातवाँ कौन है ? मोटे-बुद्धि को दौड़ाओ। सोना-~-एक पत्तल घर लेते आना। मोटे-फिर वही बात कही जिसमें बदनामी हो। छि छि , पत्तल घर लाऊँ । उस पत्तल में वह स्वाद कहाँ, जो यजमान के घर बैठकर भोजन करने में है । सुनो, सातवे महाशय हैं-पण्डित सोनाराम शास्त्री। सोना-~-चलो, दिल्लगी करते हो । भला, मैं कैसे जाऊँगी ? मोटे-ऐसे ही कठिन अवसरों पर तो विद्या की आवश्यकता पड़ती है। विद्वान् आदमी अवसर को अपना सेवक बना लेता है, मूर्ख अपने भाग्य को रोता है। सोना देवी और सोनाराम शास्त्री में क्या अन्तर है, जानती हो ? केवल परिधान का। परिधान का अर्थ समझती हो ? परिधान पहनाव' को कहते हैं। इसी साड़ी को मेरी तरह बाँध लो, मेरी मिरज़ई पहन लो, ऊपर से चादर ओढ लो। पगड़ी मैं. वाव दूंगा। फिर कौन पहचान सकता है ? सोना ने हँसकर कहा-मुझे तो लाज लगेगी। मोटे०---तुम्हें करना ही क्या है ? बातें तो हम करेंगे। सोना ने मन-ही-मन आनेवाले पदार्थों का आनन्द लेकर कहा-बढ़ा. मज़ा होगा। मोटे-बस, अव विलम्ब न करो। तैयारी करो, चलो। सोना - कितनी फकी वना लूँ ? मैं नहीं जानता। बस, यही आदर्श सामने रखो कि अधिक-से- अधिक लाभ हो। सहसा सोना देवी को एक बात याद आ गई। बोली-अच्छा, इन बिछुओं को क्या करूँगी? मोटेराम ने त्योरी चढाकर कहा- इन्हें उठाकर रख देना, और क्या करोगो ? सोनाहाँ जी, क्यों नहीं । उतारकर रख क्यों न दूंगी! मोटे-यह
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