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१३८ मानसरोवरः नहीं थकती थी, उसके साथ तूने यह कुटिल व्यवहार किया ! चाहूँ, तो तुझे अदालत में घसीटकर इस पाप का दढ दे सकता हूँ; मगर क्या फायदा ! इसका फल तुझे ईश्वर देंगे। श्यामकिगोर चुपचाप नीचे उतरे, न किसी से कुछ कहा न सुना, द्वार सुले छोड़ दिये, और गमा-तट की ओर चले ।