१३६ मानसरोवर शोहदे तो नहीं हैं ! लेकिन कैसे मालूम हो ? यह सत्य है कि देवी ने जीवन-पर्यन्त के लिए स्वामी का परित्याग किया था ; पर इतनी ही देर में उसे कुछ पश्चात्ताप होने (लगा था। अकेली एक घर में कैसे रहेगी, बैठी-बैठी क्या करेगी, यह कुछ उसकी समझ में न आता था। उसने दिल में कहा-क्यों न घर लौट चलूँ ? ईश्वर करे, वह अभी घर न आये हों। मुन्नू से बोली-तुम ज़रा दौड़कर देखो तो, बाबूजी घर आये कि नहीं। मुन्नू-आप चलकर आराम से बैठे, मैं देख आता हूँ। देवी-मैं अन्दर न जाऊँगी। मुन्नू-खुदा की कसम खाके कहता हूँ, घर विलकुल खाली है। आप हम लोगों पर शक करती हैं। हम वह लोग हैं कि आपका हुक्म पायें, तो आग में कूद पड़ें। देवी इक्के से उतरकर अन्दर चली गई। चिड़िया एक बार पकड़ जाने पर भी फड़फड़ाई , किन्तु परों में लासा लगे होने के कारण उड़ न सकी, और शिकारी ने उसे अपनी झोली में रख लिया। वह अभागिनी क्या फिर कभी आकाश में उड़ेगी ? क्या फिर उसे डालियों पर चहकना नसीव होगा? (११) श्यामकिशोर सबेरे घर लौटे, तो उनका चित्त शान्त हो गया था। उन्हें शङ्का हो रही थी कि कदाचित् देवी घर में न होगी । द्वार के दोनों पट खुले देखे तो कलेजा सन-से हो गया । इतने सबेरे किवाड़ों का खुला रहना अमगल-सूचक था । एक क्षण द्वार पर खड़े होकर अन्दर की आहट ली । कोई आवाज़ न सुनाई दी । आँगन में गये, वहाँ भी सन्नाटा, ऊपर गये चारो तरफ सूना ! घर काटने को दौड़ रहा था । श्यामकिशोर ने अब जरा सतर्क होकर देखना शुरू किया। सन्दक़ में रुपए नदारद । गहने का सन्दृत भी खाली । अब क्या भ्रम हो सकता था। कोई गगा-स्नान के लिए जाता है, तो घर के रुपए नहीं उठा ले जाता । वह चली गई । अब इसमें लेश-मात्र भी सन्देह नहीं था। यह भी मालूम था कि वह कहाँ गई है । शायद इसी वक्त लपककर जाने से वह वापस भी लाई जा सकती है । लेकिन दुनिया क्या कहेगी 2 श्यामकिशोर ने अब चारपाई पर बैठकर ठण्ढे दिल से इस घटना की विवेचना करना शुरू की। इसमें तो उन्हें सन्देह न था कि रज़ा और मुन्नू उसका पिटू । तो आखिर बावूजी का कर्तव्य क्या था ? उन्होंने वह पुराना मकान छोड़ दिया, देवी को
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