पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/१३८

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मानसरोवर श्यामकिशोर पन्द्रह-बीस मिनट तक शोर मचाने और किवाड़े हिलाने के बाद ऊल-जलूल बकते चले गये । दो-चार पड़ोसियों ने फटकारें भी सुनाई । आप भी तो पढ़े-लिखे आदमी होकर आधौरात को घर चलते हैं। नींद ही तो है, नहीं खुलती, तो क्या कीजियेगा । जाइये, किसी यार-दोस्त के घर लेट रहिये, सबेरे आइयेगा। श्यामकिशोर के जाते ही देवी ने बुकची उठाई और धीरे-धीरे नीचे उतरी । ज़रा देर उसने कान लगाकर आहट ली कि कहीं श्यामकिशोर खड़े तो नहीं हैं जव विश्वास हो गया कि वह चले गये, तो उसने धीरे से द्वार खोला और वाहर निकल आई । उसे ज़रा भी क्षोभ, ज़रा भी दुःख न था । बस, केवल एक इच्छा थी कि यहाँ से वचकर भाग जाऊँ । कोई ऐसा आदमी न था, जिस पर वह भरोसा कर सके, जो इस सकट में काम आ सके । था तो बस वही मुन्नू मेहतर । अव उसी के मिलने पर उसकी सारी आशाएँ अवलम्बित थीं। उसी से मिलकर वह निश्चय करेगी कि कहाँ जाय, कैसे रहे, मैके जाने का अब उसका इरादा न था । उसे भय होता था कि मैके में श्यामकिशोर से वह अपनी जान न बचा सकेगी। उसे यहाँ न पाकर वह अवश्य उसके मैके जायेंगे, और उसे जबरदस्ती खींच लायेंगे । वह सारी यातनाएँ, सारे अप- मान सहने को तैयार थी, केवल श्यामकिशोर की सूरत नहीं देखना चाहती थी। प्रेम. अपमानित होकर द्वेष में बदल जाता है। थोड़ी ही दूर पर चौराहा था, कई तांगेवाले खड़े थे। देवी ने एक इक्का किया और उससे स्टेशन चलने को कहा। ( १० ) देवी ने रात स्टेशन पर काटी । प्रातःकाल उसने एक तांगा किराये पर किया और परदे में बैठकर चौक जा पहुँची। अभी दुकानें न खुली थीं ; लेकिन पूछने से रजा मियाँ का पता चल गया। उसकी दूकान पर एक लौंडा झाडू दे रहा था। देवी ने उसे बुलाकर कहा-जाकर रज़ा मियाँ से कह दे कि शारदा की अम्माँ तुमसे मिलने आई हैं, अभी चलिये। दस मिनट में रज़ा और मुन्नू आ पहुंचे। देवी ने सजल नेत्र होकर कहा- तुम लोगो के पोछे मुझे घर छोड़ना पड़ा । कल रात को तुम्हारा मेरे घर जाना गजब हो गया । जो कुछ हुआ, वह फिर कहूँगी । मुझे