लाछन १३१ O- श्याम०- -इसके यह माने हैं कि जो आदमी मुझसे मिलने आये, वह मेरे न रहने पर तुमसे मिल सकता है। इसमें कोई हरज़ नहीं, क्यों ? देवी-सबसे मिलने में थोड़े ही जा रही हूँ। श्याम -तो रज़ा क्या मेरा साला है या ससुरा ? देवी-तुम तो ज़रा-जरा-सी बात पर भल्लाने लगते हो। श्याम०-यह ज़रा-सी बात है ! एक भले घर की स्त्री एक शोहदे से बातें करे, यह जरा-सी बात है ! तो बड़ी-सी बात किसे कहते हैं ? यह जरा-सी बात नहीं है कि यदि मैं तुम्हारी गरदन घोट हूँ , तो भी मुझे पाप न लगेगा; देखता हूँ, फिर तुमने वही रग पकड़ा। इतनी बड़ी सज़ा पाकर भी तुम्हारी आँखें नहीं खुली। अब- की क्या मुझे ले बीतना चाहती हो ? देवी सन्नाटे में आ गई। एक तो लड़की का शोक ! उस पर यह अपशब्दों की बौछार और भीषण आक्षेप ! उसके सिर में चक्कर-सा आ गया। बैठकर रोने लगी। इस जीवन से तो मौत कहीं अच्छा 1 केवल यही शब्द उसके मुंह से निकले । बाबू साहब गरजकर बोले-यही होगा, मत घबराओ, मत घबराओ, यही होगा । तुम मरना चाहती हो, तो मुझे भी तुम्हारे अमर होने की आकाक्षा नहीं है। जितनी जल्द तुम्हारे जीवन का अन्त हो जाय, उतना ही अच्छा । कुल में कलक तो न लगेगा। देवी ने सिसकियाँ लेते हुए कहा-क्यों एक अबला पर इतना अन्याय करते हो ! तुम्हें ज़रा भी दया नहीं आती ! श्याम०- मैं कहता हूँ, चुप रह ! देवी-क्यों चुप रहूँ? क्या किसी की ज़बान बन्द कर दोगे ? श्याम-फिर बोले जाती है ? मैं उठकर सिर तोड़ दूंगा ? देवी - क्यों सिर तोड़ दोगे, कोई ज़बरदस्ती है ? श्याम अच्छा तो बुला, देखें तेरा कौन हिमायती है ? यह कहते हुए वावू साहब झल्लाकर उठे, और देवी को कई थप्पड़ और चूं से लगा दिये , मगर वह न रोई, न चिल्लाई, न ज़बान से एक शब्द निकाला, केवल अर्थ-शून्य नेत्रों से पति की ओर ताकती रही, मानो यह निश्चय करना चाहती थी कि यह आदमी है या कुछ और।
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