लाछन १२७ अँधेरा होता जाता था , पर बाबूजो का कहीं पता नहीं । कुछ मालूम भी नहीं, वह कहाँ गये हैं। धीरे-वीरे नौ वजे , पर अब तक बाबूजी न लौटे । इतनी देर तक वह कभी बाहर न रहते थे। क्या आज ही उन्हें भी गायब होना था ? दस भी बज गये अब देवी रोने लगी। उसे लड़की की मृत्यु का इतना दु ख न था, जितना अपनी असमर्थता का। वह कैसे शव की दाहक्रिया करेगी ? कौन उसके साथ जायगा ? क्या इतनी रात गये कोई उसके साथ चलने पर तैयार होगा ? अगर कोई न गया, तो क्या उसे अकेले जाना पड़ेगा ? क्या रात-भर लोय पड़ी रहेगी ? ज्यों-ज्यो सन्नाटा होता जाता था, देवी को भय होता या । वह पछता रहो यी कि मैं शाम ही को क्यो न इसे लेकर चली गई। ग्यारह वजे थे सहसा किसी ने द्वार खोला। देवो उठकर खड़ी हो गई । समझी बाबूजी आ गये । उसका हृदय उमड़ आया और वह रोती हुई वाहर आई, पर आह । यह बावूजी न थे, ये पुलिस के आदमी थे जो इस मामले की तहकीकात करने आये थे। पांच बजे की घटना । तहकीकात होने लगी ग्यारह बजे। आखिर थानेदार भी तो आदमी है, वह भी तो सन्ध्या समय घूमने-फिरने जाता ही है । घण्टे-भर तक तहकीकात होती रही। देवी ने देखा, अब सकोच से काम न चलेगा। थानेदार ने उससे जो कुछ पूछा, उसका उत्तर उसने निस्सकोच भाव से दिया । जरा भी न शरमाई, जरा भी न झिझको । थानेदार भी दग रह गया। जब सबके बयान लिखकर दारोगाजी चलने लगे, तो देवी ने कहा-आप उस मोटर का पता लगायेंगे ? दारोगा-अब तो शायद हो उसका पता लगे । देवी-तो उसको कुछ सज़ा न होगी? दारोगा-मजवूरी है । किसी को नम्बर भी तो मालूम नहीं । देवी - सरकार इसका कुछ इ तजाम नहीं करती ? गरीबों के बच्चे इसी तरह कुचले जाते रहेंगे ? दारोगा - इसका क्या इन्तजाम हो सकता है ? मोटरें तो वन्द नहीं हो सकती ? देवी-कम-से-कम पुलिसवालों को यह तो देखना चाहिये कि शहर में कोई बहुत तेज़ न चलाये ? मगर आप लोग ऐसा क्यों करने लगे ? आपके अफसर भी तो मोटरों पर वैठते हैं । आप उनकी मोटरें रोकेंगे, तो नौकरी कैसे रहेगो ? > ,
पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/१३१
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।