लाछन १२३ यह कहते हुए श्यामकिशोर नीचे चले गये, और देवी स्तम्भित-सी खड़ी रह गई। तव उसका हृदय इस अपमान, लाछन और अविश्वास के आघात से पीड़ित हो उठा। वह फूट-फूटकर रोने लगी। उसको सबसे पड़ी चोट जिस बात से लगी, वह यह थी कि मेरे पति मुझे इतनी नीच, इतनी निर्लज्ज समझते हैं । जो काम वेश्या भी न करेगी, उसका सदेह मुझ पर कर रहे हैं। (५) श्यामकिशोर के आते ही शारदा अपने खिलौने उठाकर भाग गई थी कि कहीं वावूजी तोड़ न डालें। नीचे जाकर वह सोचने लगी कि इन्हे कहाँ छिपाकर रखू । वह इसी सोच में थी कि उसकी एक सहेली आंगन में आ गई। शारदा उसे अपने खिलौने दिखाने के लिए आतुर हो गई। इस प्रलोभन को वह किसी तरह न रोक सकी। अभी तो वावूजी ऊपर है, कौन इतनी जल्दी आये जाते हैं। तब तक क्यो न सहेली को अपने खिलौने दिखा दूँ ? उसने सहेली को बुला लिया, और दोनो नये खिलौने देखने में मग्न हो गई कि वावृ श्यामकिशोर के नीचे आने की भी उन्हें खबर न हुई। श्यामकिशोर खिलौने देखते ही झपटकर शारदा के पास जा पहुंचे और पूछा- तूने ये खिलौने कहाँ पाये ? शारदा की घिग्घी बंध गई। मारे भय के थरथर काँपने लगी। उसके मुंह से एक शब्द भी न निकला। श्यामकिशोर ने फिर गरजकर पूछा-बोलती क्यों नहीं, तुझे किसने खिलौने दिये ? शारदा रोने लगी। तव श्यामकिशोर ने उसे फुसलाकर कहा -- रो मत, हम तुझे मारेंगे नहीं । तुझसे इतना ही पूछते हैं, तूने ऐसे सुन्दर खिलौने कहाँ पाये ? इस तरह दो चार वार दिलासा देने से शारदा को कुछ धैर्य बँधा। उसने सारी कथा कह सुनाई। हा अनर्थइससे कहीं अच्छा होता कि शारदा मौन ही रहती। उसका गूंगी हो जाना भी इससे अच्छा था। देवी कोई वहाना करके बला सिर से टाल देती , पर होनहार को कौन टाल सकता है ? श्यामक्शिोर के रोम-रोम से ज्वाला निकलने लगी। खिलौने वहीं छोड़ वह धम-धम करते हुए ऊपर गये और देवी के कन्धे दोनों हाथों से मँझोड़कर बोले- तुम्हें इस घर में रहना है या नहीं ? साफ- साफ कह दो। देवी अभी तक खड़ी सिसकियों ले रही थी। यह निर्मम प्रश्न सुनकर उसके आंसू गायब हो गये। किसी भारो विपत्ति की आगका ने इस हलके-से आघात
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