लांछन १२१ मुन्नू-हजूर, रज़ा मियों को बड़ा रज होगा। मुझे तो जोता ही न छोड़ेंगे। बड़े ही मुहब्बती आदमी है हुजूर ! वीवी दो-चार दिन के लिए मैके चलो जाती है, तो बेचैन हो जाते हैं। सहसा शारदा पाठशाला से आ गई, और खिलौने देखते ही उनपर टूट पड़ी। देवी ने डांटकर कहा -क्या करती है, क्या करती है । मेम ले ले, और सब लेकर क्या करेगी। 1 शारदा--मैं तो सब लूंगी। मेम को मोटर पर बैठाकर दौड़ाऊँगो। कुता पीछे-पीछे दौड़ेगा। इन वरतनों में गुड़िया के खाने बनाऊँगी। कहाँ से आये हैं अम्मा ? बता दो। देवी--कहीं से नहीं आये , मैंने देखने को मँगवाये थे। तू इनमें से कोई एक ले ले। शारदा - मैं सव लूंगी, मेरी अम्मां न, मब ले लीजिए। कौन लाया है, अम्मा ? देवी - मुन्नू, तुम खिलौने लेकर जाओ। एक मेम रहने दो। शारदा - कहाँ से लाये हो मुन्नू, बता दो ? मुन्नू - तुम्हारे राजा-भैया ने तुम्हारे लिए भेजे हैं। शारदा -राजा भैया ने भेजे हैं। ओ हो। ( नाचकर ) राजा-भैया बड़े अच्छे हैं । कल अपनी सहेलियो को दिखलाऊँगी। किमी के पास ऐसे खिलौने न निक्लेंगे। देवी-अच्छा मुन्नू, तुम अब जाओ। रज़ा मियों से कह देना, फिर यहाँ खिलौने न भेजें। मुन्नू चला गया, तो देवी ने शारदा से कहा-ला वेटी, तेरे खिलौने रख दूँ। बाबूजी देखेंगे, तो बिगड़ेंगे। कहेंगे, रजा मियां के खिलौने क्यो लिये । तोड़-ताड़कर फेंक देंगे । भूलकर भी उनसे खिलौनों की चरचा न करना । शारदा- हाँ, अम्मा, रख दो । वावूजो तोड़ देंगे। देवी-- उनसे कभी मत कहना कि राजा भैया ने खिलौने भेजे हैं, नहीं तो वाबूजी राजा भैया को मारेंगे, और तुम्हारे कान भी काट लेंगे। कहेंगे, लड़की भिसमगी है, सबसे खिलौने मांगती फिरती है। शारदा~में उनसे कुछ न कहूंगी अम्मा ! रख दो पत्र खिलौने । । ,
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