लांछन ११७ मुन्नू मेहतर, जो बाबू साहब के घर को सफ़ाई करता था। देवी ने उन दोनों को देखते ही सिर झुका लिया। उसे आश्चर्य हुआ कि रज़ा और मुन्नू में इतनी गाढी 'मित्रता है कि रजा उसे तांगे पर बिठाकर सैर कराने ले जाता है। शारदा रजा को देखते ही बोल उठी-वावूजी, देखो वह राजा-भैया आ रहे हैं । (ताली वजाकर ) राजा भैया, इधर देखो, हम लोग तमाशा देखने जा रहे हैं। रज़ा ने मुसकिरा दिया, मगर बाबू साहब मारे क्रोध के तिलमिला उठे। उन्हें ऐसा मालूम हुआ कि ये दुष्ट केवल मेरा पीछा करने के लिए आ रहे हैं। इन दोनों में जरूर सांठ-गाँठ है । नहीं तो रजा मुन्नू को साथ क्यों लेता ? उनसे पीछा छुड़ाने के लिए उन्होंने तोंगेवालेसे कहा--और तेज़ ले चलो, देर हो रही है। ताँगा तेज हो गया। रज़ा ने भी आना ताँगा तेज़ किया। बाबू साहब ने जब तांगे को धीमा करने को कहा, तो रज़ा का ताँगा भी धीमा हो गया। आखिर बाबू' साहब ने अँझ- लाकर कहा--तुम तांगे को छावनी को ओर ले चलो, हम थिएटर देखने न जायेंगे। तोंगेवाले ने उनकी ओर कुतूहल से देखा, और तांगा फेर दिया। रजा का ताँगा भी फिर गया। बावू वाहब को इतना क्रोध आ रहा था कि रज़ा को ललकारूँ ; पर डरते थे कि कहीं झगड़ा हो गया, तो वहुत-से आदमी जमा हो जायेंगे और व्यर्थ ही झेप होगी । लहू का चूंट पीकर रह गये । अपने ही ऊपर झुमलाने लगे कि नाहक आया। क्या जानता था कि ये दोनों शैतान सिर पर सवार हो जायेंगे । मुन्नू को तो कल ही निकाल दूंगा। वारे रज़ा का ताँगा कुछ दूर चलकर दूसरी तरफ मुड़ गया, और बाबू साहब का क्रोध कुछ शात हुआ , किन्तु अव थियेटर जाने का समय न था। छावनी से घर लौट आये। देवी ने कोठे पर आकर कहा--मुफ्त में तांगेवाले को दो रुपये देने पड़े। स्यामकिशोर ने उसकी ओर रक्त-शोषक दृष्टि से देखकर कहा- और मुन्नू से चातें करो, और खिड़की पर खड़ी हो-होकर रज़ा को छवि दिखाओ। तुम न-जाने क्या करने पर तुली हुई हो ! देवी - -ऐसी बातें मुँह से निकालते तुम्हें शर्म नहीं आती ? तुम मेरा व्यर्थ ही अपमान करते हो, इसका फल अच्छा न होगा। मैं किसी मर्द को तुम्हारे पैरों की धूल के वरावर भी नहीं समझतो, उस अभागे मेहतर की क्या हकीकत है । तुम मुझे इतनी नीच सकझते हो ?
पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/१२१
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।