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१०२ मानसरोवर सोम०-अभी थाने से आ रहा हूँ। वहाँ उनकी लाश मिली है । रेल के नीचे दब गये ! हाय ज्ञानू । मुझ हत्यारे को क्यों न मौत आ गई ! गोविन्दी के मुंह से फिर कोई शब्द न निकला । अन्तिम 'हाय' के साथ बहुत दिनों तक तड़पता हुआ प्राण-पक्षी उड़ गया। एक क्षण मे गाँव की कितनी ही स्त्रियाँ जमा हो गई। सब कहती थीं- देवी थी। सती थी। प्रात काल दो अथियाँ गाँव से निकलीं। एक पर रेशमी चुंदरी का कफन था, दूसरी पर रेशमी शाल का। गाँव के द्विजों में से केवल सोमदत्त साथ था। शेष गाँव के नीच जातिवाले आदमी थे । सोमदत्त ही ने दाह-क्रिया का प्रबन्ध किया था ! वह रह-रहकर दोनों हाथों से अपनी छाती पीटता था, और ज़ोर-जोर से चिल्लाता -हाय ज्ञानू ! हाय ज्ञानू !! था-