पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/३५

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मानसरोवर सेठजी ने पापी आँखो को फेरकर और पापी मन को दबाकर कहा- यहाँ से थोड़ी दूर पर एक गाँव है, वहीं जाना है। सांझ को इधर ही से लौटू गा। सुन्दरी ने प्रसन्न होकर कहा-तो फिर अाज यहीं रहिएगा। सांझ को फिर कहाँ जाइएगा। एक दिन घर के बाहर की हवा भी खाइए। फिर न जाने कब मुलाकात होगी। इक्केवाले ने पाकर सेठजी के कान में कहा-पैसे निकालिए तो दाने- चारे का इन्तजाम करूं। सेठजी ने चुपके से अठन्नी निकालकर दे दो । इक्केवाले ने फिर पूछा-आपके लिए कुछ मिठाई लेता आऊँ ? यहाँ आपके लायक मिठाई तो क्या मिलेगी, हां, मुंह मीठा हो जायगा। सेठजी बोले-मेरे लिए कोई ज़रूरत नहीं, हाँ, बच्चों के लिए यह चार आने की मिठाई लिवाते आना। चवन्नी निकालकर, सेठजी ने उसके सामने ऐसे गर्व से फेकी, मानो इसकी उनके सामने कोई हक़ीकत नहीं है । सुन्दरी के मुँह का भाव तो देखना चाहते थे , पर डरते थे कि कही वह यह न समझे, लाला चवन्नी क्या दे रहें हैं, मानो किसी को मोल ले रहे हैं । इक्वेवाला चवन्नी उठाकर जा ही रहा था कि सुन्दरी ने कहा-सेठजी की चवन्नी लौटा दो । लपककर उठा ली । शर्म नहीं आती । यह मुझसे रुपया ले लो। पाठ आने की ताज़ी मिठाई बनवाकर लायो । उसने रुपया निकालकर फेका। सेठजी मारे लाज के गड़ गये। एक इक्केवान की भठियारिन जिसकी टके की भी औकात नहीं, इतनी ख़ातिरदारी करे कि उनके लिए पूरा रुपया निकालकर दे दे, यह भला वह कैसे सह सकते थे। बोले-नहीं-नहीं, यह नहीं हो सकता। तुम अपना रुपया रख लो। ( रसिक आँखों को तृप्त करके ) मैं रुपया दिये देता हूँ। यह लो, आठ पाने की ले लेना। इक्केवान तो उधर मिठाई और दाना-चारे की फिक्र में चला,इधर सुन्दरी ने सेठ से कहा-वह तो अभी देर में आयेगा लाला, तब तक पान तो खाओ।