पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/३००

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मॉगे की घड़ी ३०१ 'देखो दानू, मुझसे उड़ोगे, तो अच्छा न होगा। क्यों नाहक मेरे हाथों पिटोगे। 'पीटना चाहो, तो पीट लो भई, सैकड़ों ही बार पीया है, एक बार और सही। बार पर से जो ढकेल दिया था, उसका निशान बना हुआ है, यह देखो। 'तुम टाल रहे हो और मेरा दम घुट रहा है। सच बतानो क्या बात थी। बात-बात कुछ नहीं थी । मैं जानता था कि कितनी हो किफायत करोगे, ३०) में तुम्हारा गुज़र न होगा। और न सही, दोनों वक्त रोटियाँ तो हों। बस, इतनी बात है। अब इसके लिए जो चाहो दंड दो।