पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/२९६

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मॉगे की घड़ी मुझे रुपये अदा कर लेने दो। आख़िर तुम उस घड़ी को ४-५ सौ में वेच लेते या नहीं। मेरे कारण तुम्हें इतना नुकसान क्यों हो।' 'भई, अब घड़ी की चर्चा न करो। यह बतलानो कब जानोगे। 'अरे, तो पहले रहने का तो ठीक कर लूं।' 'तुम जानो, मैं मकान का प्रबंध कर रक्खू गा।' 'मगर मैं ५) से ज़्यादा किराया न दे सकूँगा। शहर से ज़रा हटकर मकान सस्ता मिल जायगा। 'अच्छी बात है, मैं सब ठीक कर रक्खू गा । किस गाड़ी से लौटोगे । यह अभी क्या मालूम । बिदाई का मामला है, साइत बने, या न बने, या लोग एकाध दिन रोक ही ले। तुम इस झझट में क्यों पड़ोगे। मै दो- चार दिन मे मकान ठीक करके चला जाऊँगा।' 'जी नहीं, आप आज जाइए और कल आइए।' 'तो उतरूँगा कहाँ 'मैं मकान ठीक कर लूंगा । मेरा आदमी तुम्हें स्टेशन पर मिलेगा।' मैंने बहुत हीले-हवाले किये, पर उस भले आदमी ने एक न सुनी। उसी दिन मुझे ससुराल जाना पड़ा। ( ५ ) मुझे ससुराल में तीन दिन, लग गये । चौथे दिन पत्नी के साथ चला। जी में डर रहा था कि कहीं दानू ने कोई आदमी न भेजा हो, तो कहाँ उतरूँगा, कहाँ को जाऊँगा। आज चौथा दिन है। उन्हें इतनी क्या गरज पड़ी है कि बार-बार स्टेशन पर अपना आदमी भेजे । गाड़ी में सवार होते समय इरादा हुआ कि दानू को तार से अपने आने की सूचना दे दूं। लेकिन ।।1) का खर्च था, इससे हिचक गया। मगर जब गाड़ी बनारस पहुंची, तो देखता हूँ, दानू बाबू स्वय हैट-कैट लगाये, दो कुलियों के साथ खड़े हैं। मुझे देखते ही दौड़े और बोले- 'ससुगल की रोटियां बड़ी प्यारी लग रही थीं क्या। तीन दिन से रोज़ दौड़ रहा हूँ। जुरमाना देना पड़ेगा।' देवीजी सिर से पांव तक चादर ओढ़े, गाड़ी से उतरकर प्लेटफार्म पर 3