पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/२४६

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, दो सखियाँ विचार नहीं रखते, कुछ ऐसे हैं जो एक बार बच्चे पैदा करने के बाद अलग हो जाते हैं और कुछ ऐसे हैं जो जीवन पर्यंत एक साथ रहते हैं। कितनी ही भिन्न-भिन्न श्रेणयां हैं । मैं मनुष्य होने के नाते उसी श्रेणी को श्रेष्ठ समझता हूँ जो जीवन पर्यंत एक साथ रहते हैं। मगर स्वेच्छा से । उनके यहाँ कोई कैद नहीं, कोई सजा नहीं। दोनों अपने-अपने चारे-दाने की फिक्र करते हैं । दोनों मिलकर रहने का स्थान बनाते हैं, दोनों साथ बच्चों का पालन करते हैं। उनके बीच मे कोई तीसरा नर या मादा था ही नहीं सकता, यहाँ तक कि उनमें से जब एक मर जाता है तो दूसरा मरते दम तक फु?ल रहता है । यह अँधेर मनुष्य जाति ही में है कि स्त्री ने किसी दूसरे पुरुष से हँसकर बात की और उसके पुरुष की छाती पर सांप लोटने लगा, खून-खराबे के मंसूबे सोचे जाने लगे। पुरुष ने किसी दूसरी स्त्री की ओर रसिक नेत्रों से देखा और अर्धांगिनी ने त्योरियां बदली, पति के प्राण लेने को तैयार हो गई। यह सब क्या है ? ऐसा मनुष्य समाज सभ्यता का किस मुंह से दावा कर सकता है। भुवन ने सिर सहलाते हुए कहा-मगर मनुष्यों में भी तो भिन्न-भिन्न श्रेणियाँ हैं । कुछ लोग हर महीने एक नया जोड़ा खोज निकालेगे। विनोद ने हँसकर कहा-लेकिन यह इतना आसान काम न होगा। या तो वह ऐसी स्त्री चाहेगा जो संतान का पालन स्वयं कर सकती हो, या उसे एकमुश्त सारी रकम अदा करनी पडेगी ! भुवन भी हॅसे-बार अपने को किस श्रेणी में रक्खेगे ? विनोद इस प्रश्न के लिए तैयार न थे । था भी वेढगा सा सवाल । झोपते हुए बोले-परिस्थितियां जिस श्रेणी में ले जायें। मैं स्त्री और पुरुष दोनो के लिए पूर्ण स्वाधीनता का हामी हूँ। कोई कारण नहीं है कि मेरा मन किसी नवयौवना की ओर आकर्षित हो और वह भी मुझे चाहे, तो भी मै समाज और नीति के भय से उसकी ओर ताक न सकूँ। मैं इसे पाप नहीं समझता। भुवन अभी कुछ उत्तर न देने पाये थे कि विनोद उठ खड़े हुए। कालेज के लिये देर हो रही थी। तुरत कपड़े पहने और चल दिये । हम दोनों दीवानखाने में आकर बैठे और बाते करने लगे। भुवन ने सिगार जमाते हुए कहा-'कुछ सुना, कहाँ जाकर तान टूटी।'